श्री शिव रुद्र गायत्री मंत्र
सतनमो आदेश।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी……।शिव में आना।शिव में जाना।शिव ने तीन लोक में किया पसारा।तीन लोक शिव कहलाया शिव तीन लोक से न्यारा।शिव की काया।शिव की माया।शिव में पंचतत्व आन समाया।शिव ही अलख निर्वाणी।शिव ही अमृत वाणी।शिव ही अनहद वाणी।शिव ही धरती शिव ही आकाश।शिव में जागें ज्योति प्रकाश।शिव ही अलख निरंजन निराकार।अविगत पुरुष तत्वसार।तत्वसार मध्ये परमज्योति।परमज्योति मध्ये उत्पन्न भई माता शिव रुद्र गायत्री।शिव रुद्र गायत्री विश्वनी विश्वमूर्ति पाताले ग्रहणी चतुर्थे वेद मुखी दायिनी नासिका गंगा यमुना सरस्वती त्रिकुटी देवता देखें चन्द्रमा आद लिलाट सत्ताईस नक्षत्र पुष्पमाला अट्ठारह भार वनस्पति सेली सिंगी मीन मेखला धारी ह्रदय तैतीस कोटि देवी देवता कुक्षो सप्त सागर रोमावलिते चार खानी चार वाणी चन्द्र सूर्य पवन पानी धरती आकाश।पंच तत्व पिण्ड प्राण ले किया प्रकाश।शून्य निरालम्ब जी दिया निवास।जति निरालम्ब जी के चरण कमल को आदेश नमाम्यहम नमस्कार।लख चौरासी जिया जून यह घोर मन्त्र क्षीर मन्त्र बीज मंत्र अभय जाप जपन्ते अगम जाप जपन्ते श्री सदाशिव शम्भुजती गुरु गोरक्षनाथ बाला।ॐ शिव गोरक्षाय नमो नमः।इक्कीस ब्रम्हाण्ड ले उपजी शिव रुद्र गायत्री चारों वेद ले कथी उपजै तीन देव ब्रम्हा विष्णु महेश।शिव रुद्र गायत्री विश्वामित्र ऋषि कथी सतगुरु के उपदेश।
प्रातः काले उत्पन्न भई शिव रुद्र गायत्री जटाजूट मुकुट त्रिशूल खप्पर धारिणी।पंच मुखी दसभुजा मुण्डमाला धारिणी।तमोगुणी मढ़ी मसाण वासिनी।रक्त वर्णी नाद मुद्रा विभूति धारिणी।वृषभ वाहिनी रुद्र देवता की पोषणी।ऋद्धि सिद्धि बुद्धि प्रदायिनी।ॐ तत्पुरुषाय विदमहे महादेवाय धीमही तन्नो रुद्र प्रचोदयात।ॐ नमः शिवाय।
मध्येकाल उत्पन्न भई शिव रुद्र गायत्री जटाजूट मुकुट दण्ड कमण्डल पुस्तक धारिणी।चतुर्मुखी चतुर्भुजा स्फटिक माला धारिणी।रजोगुणी जल वासिनी।स्वेत वर्णी हँस वाहिनी ब्रम्ह देवता की पोषणी।चार वेद छः शास्त्र अठ्ठारह पुराण चौबीस गायत्री मंत्र सूतक पातक का ज्ञान प्रदायिनी।ॐ चतुर्मुखाय विदमहे हँसरुढ़ाय धीमही तन्नो ब्रम्ह प्रचोदयात।ॐ ब्रम्ह देवाय नमः।
संध्या काल उत्पन्न भई शिव रुद्र गायत्री जटाजूट मुकुट शंख चक्र गदा पदम् धारिणी।एक मुखी दो भुजा वैजयंती माला धारिणी।सतोगुणी तेज वासिनी।श्याम वर्णी गरुड़ वाहिनी विष्णु देवता की पोषणी।अन्न धन वस्त्र की प्रदायनि।ॐ नारायणाय विदमहे वासुदेवाय धीमही तन्नो विष्णु प्रचोदयात।ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः।
कहे अवधूत दत्तात्रेय नाथजी सुनो गोपीचन्द भृतहरि।शिव रुद्र गायत्री मंत्र को जल में जपें तो मोक्ष मुक्ति का फल पावैं।मढ़ी मसान में जपें तो भूत प्रेत वैताल से मुक्ति का फल पावैं।अग्नि सन्मुख जपें तो काया उज्ज्वल हो घट पिंड वज्जर समान होनें का फल पावैं।इतना शिव रुद्र गायत्री मंत्र जाप सम्पूर्ण भया।गिरिनार गिरी की शिला पर पदमासन बैठ अवधूत दत्तात्रेय नाथ जी ने राजा गोपीचन्द राजा भृतहरि को कान में पढ़ कथ कर सुनाया।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।
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