ہفتہ، 18 فروری، 2023

गुरु मंत्र

अथ गुरुमन्त्रः

Ath Guru Mantra

ॐ गुरुजी ! ओं सोऽहं अलियं कलियं तारा त्रिपुरा तोतला |

काहे हाथ पुस्तक ? काहे हाथ माला ?

बायें हाथ पुस्तक दायें हाथ माला |

जपो तपो श्रीसुन्दरी बाला |

रक्षा करै गुरुगोरक्षनाथ बाला |

जीव पिण्डका तूं रखवाला |

नाथजी गुरुजी आदेश आदेश ||


श्रीगुरुमन्त्रका माहात्म्य

Shree Guru Mantra Kaa Maahaatmya

ॐ गुरुजी ! ओं सोऽहं अलियं कलियं श्रीसुन्दरी बाला |

कौन जपन्ते ओं ? कौन जपन्ते सोऽहं ? कौन जपन्ते अलियं ? कौन जपन्ते कलियं ? कौन जपन्ते सुन्दरी ? कौन जपन्ते बाला ?

ओं जपन्ते निरन्जन निराकार अवगत सरुपी | सोऽहं जपन्ते माई पारवती महादेव ध्यान सरुपी | अलियं जपन्ते ब्रह्मा सरस्वती वेद सरुपी | कलियं जपन्ते धरतीमाता अन्नपूर्णेश्वरि | बाला जपन्ते श्रीशम्भुयति गुरुगोरक्षनाथ शिव सरुपी |

आ ओ सुन्दर आलं पूछे देह कौन कौक योगेश्वरा ? कौन कौन नगेश्वरा ? धाव धाव ईश्वरी ! धाव धाव महेश्वरी ! बायें हाथ पुस्तक | दाहिने हाथ माला | जपो तपो श्रीसुन्दरी गुरुगोरक्ष बाला |इतना बाला बीजमन्त्र सम्पूर्ण भया अनन्तकोटि सिद्धों में बैठकर श्रीशम्भुयति गुरु गोरक्षनाथजी ने नौनाथ चौरासी सिद्धों को पढ़ कथकर सुनाया सिद्धों ! गुरुपीरो ! आदेश आदेश ||


श्रीगुरुमन्त्रका द्वितीय माहात्म्य

Shree Guru Mantra Kaa Dvitiya Maahaatmya

ॐ गुरुजी ! पवनपर्वत ऊर्ध्वमुख कुआ सतगुरु आये निरंकार ब्रह्मा आये देखा कौन हाथ पुस्तक ? कौन हाथ माला ? बायें हाथ पुस्तक दाहिने हाथ माला जपो तपो शिवं सोऽहं सुन्दरी बाला | बाला जपे सो बाला होवे | बूढा जपे सो बाला होवे | योगी जपे सो निरोगी होय जपो जपन्त कटन्त पाप | अन्त बेले माई न बाप | गुरु संभालो आपो आप | इतना गुरुमन्त्र सम्पूर्णम् |

श्री बाला जाप बीज मंत्र

श्रीबाला जाप बीजमंत्र
ॐ नमो आदेश गुरूजी कौं, आदेश ॐ गुरूजी -
ॐ सोहं ऐं क्लीं श्री सुन्दरी बाला
काहे हात पुस्तक काहे हात माला |
बायें हात पुस्तक दायें हात माला जपो तपो श्रीसुन्दरी बाला |
जिवपिण्डका तूं रखवाला हंस मंत्र कुलकुण्डली बाला |
बाला जपे सो बाला होय बूढा जपे सो बाला होय ||
घट पिण्डका रखवाला श्रीशंभु जति गुरु गोरख बाला |
उलटंत वाला पलटंत काया सिद्धोंका मारग साधकोंने पाया ||
ॐ गुरूजी, ॐ कौन जपंते सोहं कौन जपंते ऐं कौन जपंते |
क्लीं कौन जपंते श्रीसुन्दरी कौन जपंते बाला कौन जपंते ||
ॐ गुरूजी, ॐ जपंते भूचरनाथ अलख अगौचर अचिंत्यनाथ |
सोहं जपंते गुरु आदिनाथ ध्यान रूप पठन्ते पाठ ||
ऐ जपंते व्रह्माचार वेद रूप जग सरजन हार |
क्लीं जपंते विष्णु देवता तेज रूप राजासन तपता ||
श्रीसुन्दरी पारवती जपन्ती धरती रूप भण्डार भरन्ती |
बाला जपंते गोरख बाला ज्योति रूप घट घट रखवाला ||
जो वालेका जाने भेव आपहि करता आपहि देव |
एक मनो कर जपो जाप अन्तवेले नहि माई बाप ||
गुरु सँभालो आपो आप विगसे ज्ञान नसे सन्ताप |
जहां जोत तहाँ गुरुका ज्ञान गतगंगा मिल धरिये ध्यान ||
घट पिण्डका रखवाला श्रीशंभु जति गुरु गोरख बाला |
जहां बाला तहां धर्मशाला सोनेकी कूची रुपेका ताला ||
जिन सिर ऊपर सहंसर तपई घटका भया प्रकाश |
निगुरा जन सुगुरा भया कटे कोटि अघ राश ||
सुचेत सैन सत गुरु लखाया पडे न पिण्ड विनसे न काया |
सैन शब्द गुरु कन्हें सुनाया अचेत चेतन सचेत आया ||
ध्यान स्वरूप खोलिया ताला पिण्ड व्रह्माण्ड भया उजियाला |
गुरु मंत्र जाप संपूरण भया सुण पारवती माहदेव कह्ना ||
नाथ निरंजन नीराकार बीजमंत्र पाया तत सार |
गगन मण्डल में जय जय जपे कोटि देवता निज सिर तपे ||
त्रिकुटि महल में चमका होत एकोंकार नाथ की जोत |
दशवें द्वार भया प्रकाश बीजमंत्र, निरंजन जोगी के पास ||
ॐ सों सिद्धोंकी माया सत गुरु सैन अगम गति पाया |
बीज मंत्र की शीतल छाया भरे पिण्ड न विनसे काया ||
जो जन धरे बाला का ध्यान उसकी मुस्किल ह्नोय आसान |
ॐ सोहं एकोंकार जपो जाप भव जल उतरो पार ||
व्रह्मा विष्णु धरंते ध्यान बाला बीजमंत्र तत जान |
काशी क्षेत्र धर्म का धाम जहां फूक्या सत गुरने कान ||
ॐ बाला सोहं बाला किस पर बैठ किया प्रति पाला |
ऋद्ध ले आवै सुण्ढ सुण्ढाला हित ले आवै हनुमत बाला ||
जोग ले आवे गोरख बाला जत ले आवे लछमन बाला |
अगन ले आवे सूरज बाला अमृत ले आवे चन्द्रमा बाला ||
बाला वाले का धर ध्यान असंख जग की करणी जान |
मंगला माई जोत जगाई त्रिकुटि महल में सुरती पाई ||
शिव शक्ति मिल वैठे पास बाला सुन्दरी जोत प्रकाश |
शिव कैलास पर थापना थापी व्रह्मा विष्णु भरै जन साखी ||
बाला आया आपहि आप तिसवालेका माइ न बाप |
बाला जपो सुन्न महा सुन्न बाला जपो पुन्न महा पुन्न ||
बाला जपो जोग कर जुक्ति बाला जपो मोक्ष महा मुक्ति |
बाला बीज मंत्र अपार बाला अजपा एकोंकार ||
जो जन करे बाला की सेव ताकौं सूझे त्रिभुवन देव |
जो जन करे बाला की भ्राँत ताको चढे दैत्यके दाँत ||
भरम पडा सो भार उठावै जहाँ जावै तहाँ ठौर न पावै |
धूप दीप ले जोत जगाई तहाँ वैठी श्री त्रिपुरा माई ||
ऋद्ध सिद्ध ले चौक पुराया सुगुरा जन मिल दर्शन पाया |
सेवक जपै मुक्ति कर पावै बीज मंत्र गुरु ज्ञान सुहावै ||
ॐ सोहं सोधन काया गुरु मंत्र गुरु देव बताया |
सव सिद्धनके मुखसे आया सिद्ध वचन निरंजन ध्याया ||
ओवं कारमें सकल पसारा अक्षय जोगि जगतसे न्यारा |
श्री सत गुरु गुरुमंतर दीजै अपना जन अपना कर लीजै ||
जो गुरु लागा सन्मुख काना सो गुरु हरि हर व्रह्मा समाना |
गुरु हमारे हरके जागे अरज करूं सत गुरुके आगे ||
जोत पाट मैदान रचाया सतसे ल्याया धर्मसे विठाया |
कान फूक सर जीवत कीया सो जोगेसर जुग जुग जीया ||
जो जन करे बालाकी आसा सो पावै शिवपुरिका वास |
जपिये भजिये श्रीसुन्दरी बाला आवा गवन मिटे जंजाला ||
जो फल मांगूँ सो फल होय बाला बीज मंत्र है सोय |
गुरु मंत्र संपूरण माला रक्षा करै गुरु गोरख वाला ||
सेवक आया सरणमें धन्या चरणमें शीष |
बालक जान कर कीजिये दयादृष्टि आशीष ||
गुरु हमारे हरके जागे नीवँ नीवँ नावूँ माथ |
वलिहारी गुरुर आपणे जिन दीपक

10 महाविद्या की दसवीं ज्योति 10

दसवीं ज्योति कमला प्रगटी |
(कमला)
ॐ अयोनी शंकर ॐकार रुप, कमला देवी सती पार्वती का स्वरुप | हाथ में सोने का कलश मुख से अभय मुद्रा | श्वेत वर्ण सेवा पूजा करे, नारद इन्द्रा | देवी देवत्या ने किया जय ओंकार | कमला देवी पूजो केशर पान सुपारी, चकमक चीनी फतरी तिल गुग्गल सहस्त्र कमलों का किया हवन | कहे गोरख, मंत्र जपो जाप जपो ऋद्धि सिद्धि की पहचान गंगा गौरजा पार्वती जान | जिसकी तीन लोक में भया मान | कमला देवी के चरण कमल को आदेश |
ॐ ह्रीं क्लीं कमला देवी फट् स्वाह:
सुनो पार्वती हम मत्स्येन्द्र पूता, आदिनाथ नाती, हम शिव स्वरुप उलटी थापना थापी योगी का योग, दस विद्या शक्ति जानो, जिसका भेद शिव शंकर ही पायो | सिद्ध योग मरम जो जाने विरला तिसको प्रसन्न भयी महाकालिका | योगी योग नित्य करे प्रात: उसे वरद भुवनेश्वरी माता | सिद्धासन सिद्ध, भया श्मशानी तिसके संग बैठी बगलामुखी | जोगी खड दर्शन को कर जानी, खुल गया ताला ब्रह्माण्ड भैरवी | नाभी स्थाने उडीय्यान बांधी मनीपुर चक्र में बैठी, छिन्नमस्ता रानी | ॐकार ध्यान लाग्या त्रिकुटी, प्रगटी तारा बाला सुन्दरी | पाताल जोगन (कुण्डलिनी) गगन को चढ़ी, जहाँ पर बैठी त्रिपुर सुन्दरी | आलस मोड़े, निन्द्रा तोड़े तिसकी रक्षा देवी धूमावंती करें | हंसा जाये दसवें द्वारे देवी मातंगी का आवागमन खोजे | जो कमला देवी की धूनी चेताये तिसकी ऋद्धि सिद्धि से भण्डार भरे | जो दशविद्या का सुमिरण करे | पाप पुन्य से न्यारा रहे | योग अभ्यास से भये सिद्धा आवागमन निवराते | मन्त्र पढ़े सो नर अमर लोक में जायें | इतना दस महाविद्या मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया | अनन्त कोट सिद्धों में, गोदावरी त्र्यम्बक क्षेत्र अनुपान शिला, अवलगढ़ पर्वत पर बैठ श्री शम्भुजती गुरु गोरक्षनाथ जी ने पढ़ कथ कर सुनाया श्री नाथजी गुरूजी को आदेश | आदेश |
  1. ॐ शिव गोरक्ष योगी

दसमहाविद्या की नवमी ज्योति-9

नवमी ज्योति मातंगी प्रगटी |
(मातंगी)
ॐ गुरूजी शून्य शून्य महाशून्य, महाशून्य में ओंकार ॐकार में शिवम् शिवम् में शक्ति - शक्ति अपन्ते उहज आपो आपना, सुभय में धाम कमल में विश्राम, आसन बैठी, सिंहासन बैठी पूजा पूजो मातंगी बाला, शीश पर शशी अमिरस प्याला हाथ खड्ग नीली काया | बल्ला पर अस्वारी उग्र उन्मत मुद्राधारी, उद गुग्गुल पाण सुपारी, खीरे खाण्डे मद्य मांसे घृत कुण्डे सर्वांगधारी | बुन्द मात्रेन कडवा प्याला, मातंगी माता तृप्यन्ते तृप्यन्ते | ॐ मातंगी सुन्दरी, रुपवंती, कामदेवी, धनवंती, धनदाती, अन्नपूर्णी अन्न्दाती, मातंगी जाप मंत्र जपे काल का तुम काल को खाये | तिसकी रक्षा शम्भुजती गुरु गोरक्षनाथ जी करे |
  1. ॐ ह्री क्लीं हूँ मातंग्यै फट् स्वाहा |


दसमहाविद्या के अष्टम ज्योति -8

अष्ठम ज्योति बगलामुखी प्रगटी |
(बगलामुखी)
ॐ सौ सौ सुता समुन्दर टापू, टापू में थापा सिंहासन पीला | सिंहासन पीले ऊपर कौन बैसे सिंहासन पीला ऊपर बगलामुखी बैसे, बगलामुखी के कौन संगी कौन साथी | कच्ची बच्ची काक - कुतीया - स्वान चिड़िया, ॐ बगला बाला हाथ मुग्दर मार, शत्रु ह्रदय पर स्वार तिसकी जिव्हा खिच्चै बाला | बगलामुखी मरणी करणी उच्चाटन धरणी, अनन्त कोटि सिद्धों ने मानी ॐ बगलामुखी रमे ब्रह्माण्डी मण्डे चन्द्र्सूर फिरे खण्डे खण्डे | बाला बगलामुखी नमो नमस्कार |
ॐ हृलीं ब्रह्मास्त्रायैं विदमहे स्तम्भनबाणायै

दसमहाविद्या के सप्तम ज्योति -7

सप्तम ज्योति धूमावती प्रगटी |
(धूमावती)
ॐ पाताल निरन्जन निराकार, आकाश मण्डल धुन्धुकार, आकाश दिशा से कौन आई, कौन रथ कौन असवार, आकाश दिशा से धूमावंती आई, काक ध्वजा का रथ अस्वार थरै धरत्री थरै आकाश, विधवा रुप लम्बे हाथ, लम्बी नाक कुटिल नेत्र दुष्टा स्वभाव, डमरु बाजे भद्रकाली, क्लेश कलह कालरात्रि | डंका डंकनी काल किट किटा हास्य करी | जीव रक्षन्ते जीव भक्षन्ते जाया जीया आकाश तेरा होये | धूमावन्तीपुरी में वास, न होती देवी न देव तहाँ न होती पूजा न पाती तहाँ न होती जात न जाती तब आये श्री शम्भुजती गुरु गोरक्षनाथ आप भयी अतीत |
ॐ धूं: धूं: धूमावती फट् स्वाह: |

10 महाविद्या का मंत्र -6

षष्टम् ज्योति भैरवी प्रगटी |
(भैरवी)
ॐ सती भैरवी भैरो काल यम जाने यम भूपाल तीन नेत्र तारा त्रिकुटी, गले में माला मुण्डन की | अभय मुद्रा पीये रुधिर नाशवन्ती ! काला खप्पर हाथ खन्जर, कालापीर धर्म धूप खेवन्ते वासना गई सातवे पाताल, सातवे पाताल मध्ये परमतत्व परमतत्व में जोत, जोत में परम जोत, परम जोत में भई उत्पन्न काल भैरवी, त्रिपुर भैरवी, समपत प्रदा भैरवी, कैलेश भैरवी, सिद्धा भैरवी, विध्वंसिनि भैरवी, चैतन्य भैरवी, कामेश्वरी भैरवी, षटकुटा भैरवी, नित्या भैरवी | जपा अजपा गोरक्ष जपन्ती यही मंत्र मत्स्येन्द्रनाथ जी को सदा शिव ने कहायी | ऋद्ध फूरो सिद्ध फूरो सत श्री शम्भुजती गुरु गोरक्षनाथ जी अनन्त कोटि सिद्धा ले उतरेगी काल के पार, भैरवी भैरवी खड़ी जिन शीश पर, दूर हाटे काल जन्जाल भैरवी अमंत्र बैकुण्ठ वासा | अमर लोक में हुवा निवासा |
"ॐ हस्त्रो हस्कलरो हस्त्रो:" |

10 महाविद्या का पांचवा मंत्र -5

पंचम ज्योति छिन्नमस्ता प्रगटी |
(छिन्नमस्ता)
सत का धर्म सत की काया, ब्रह्म अग्नि में योग जमाया | काया तपाये जोगी (शिव गोरख) बैठा, नाभ कमल पर छिन्नमस्ता, चन्द्र सूर में उपजी सुषुम्नी देवी, त्रिकुटी महल में फिरे बाला सुन्दरी, तन का मुन्डा हाथ में लीन्हा, दाहिने हाथ में खप्पर धार्या | पी पी पीवे रक्त, बरसे त्रिकुट मस्तक पर अग्नि प्रजाली, श्वेत वर्णी मुक्त केशा कैची धारी | देवी उमा की शक्ति छाया, प्रलयी खाये सृष्टि सारी | चण्डी, चण्डी फिरे ब्रह्माण्डी भख भख बाला भख दुष्ट को मुष्ठ जाती, सती को रख, योगी घर जोगन बैठी, श्री शम्भुजती गोरखनाथ जी ने भाखी | छिन्नमस्ता जपो जाप, पाप कन्ट्न्ते आपो आप जो जोगी करे सुमिरण पाप पुण्य से न्यारा रहे | काल ना खाये |
श्रीं क्लीं ह्रीं ऐं वज्र वैरो चनीये हूँ हूँ फट् स्वाह: |

10 महाविद्या का चतुर्थ मंत्र -4

चतुर्थ ज्योति भुवनेश्वरी प्रगटी |
(भुवनेश्वरी)
ॐ आदि ज्योत आनादि ज्योत, ज्योत मध्ये परम ज्योत - परम ज्योत मध्ये शिव गायत्री भई उत्पन्न, ॐ प्रात: समय उत्पन्न भई देवी भुवनेश्वरी | बाला सुन्दरी कर धर वर पाशांकुश अन्न्पुर्णी दुधपूत बल दे बालका ऋद्धि सिद्धि भण्डार भरे, बालकाना बल दे जोगी को अमर काया | १४ भुवन का राजपाट संभाला कटे रोग योगी का, दुष्ट को मुष्ट, काल कन्टक मार | योगी बनखण्ड वासा, सदा संग रहे भुवनेश्वरी माता |
ह्रीं

10 महाविद्या की तृतीया ज्योति -3

तृतीय ज्योति त्रिपुर सुन्दरी प्रगटी |
(षोडशी - त्रिपुर सुन्दरी)
ॐ निरन्जन निराकार अवधू मूल द्वार में बन्ध लगाई पवन पलटे गगन समाई, ज्योति मध्ये ज्योत ले स्थिर हो भई ॐ मध्या: उत्पन्न भई उग्र त्रिपुरा सुन्दरी शक्ति आवो शिवघर बैठो, मन उनमन, बुध सिद्ध चित्त में भया नाद | तीनों एक त्रिपुर सुन्दरी भया प्रकाश | हाथ चाप शर धर एक हाथ अंकुश | त्रिनेत्रा अभय मुद्रा योग भोग की मोक्षदायिनी | इडा पिंगला सुषुम्ना देवी नागन जोगन त्रिपुर सुन्दरी | उग्र बाला, रुद्र बाला तीनों ब्रह्मपुरी में भया उजियाला | योगी के घर जोगन बाला, ब्रह्मा विष्णु शिव की माता |
श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौं ह्रीं श्रीं कं एईल
ह्रीं हंस कहल ह्रीं सकल ह्रीं सो:
ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं

ज्योति तारा त्रिकुटा तोतला प्रगति तारा 2

द्वितीय ज्योति तारा त्रिकुटा तोतला प्रगटी |
(तारा)
ॐ आदि योग अनादि माया जहां पर ब्रह्माण्ड उत्पन्न भया | ब्रह्माण्ड समाया आकाश मण्डल तारा त्रिकुटा तोतला माता तीनों बसै ब्रह्म कपालि, जहां पर ब्रह्मा विष्णु महेश उत्पत्ति, सूरज मुख तपे चंद्र मुख अमिरस पीवे, अग्नि मुख जले, आद कुंवारी हाथ खङग गल मुण्ड माल, मुर्दा मार ऊपर खड़ी देवी तारा | नीली काया पीली जटा, काली दन्त जिह्वा दबाया | घोर तारा अघोर तारा, दूध पूत का भण्डार भरा | पंच मुख करे हा हा ऽ:ऽ:कारा, डांकनी शाकिनी भूत पलिता सौ सौ कोस दूर भगाया | चंडी तारा फिरे ब्रह्मांडी तुम तो हों तीन लोक की जननी |
ॐ ह्रीं श्रीं फट्, ओं ऐं ह्रीं श्रीं हूं फट् |

10 महाविद्या -1

ॐ निरन्जन निराकार अवगत पुरुष तत सार, तत सार मध्ये ज्योत ज्योत मध्ये परम ज्योत, परम ज्योत मध्ये उत्पन्न भई, माता शम्भु शिवानी काली, ओ काली काली महाकाली, कृष्ण वर्णी, शव वाहनी, रुद्र की पोषणी, हाथ खप्पर खडंग धारी, गले मुण्डमाल हंस मुखी | जिह्वा ज्वाला दन्त काली | मद्य मांस कारी श्मशान की रानी | मांस खाये रक्त - पी - पावे | भस्मन्ति माई जहां पर पाई तहां लगाई | सत की नाती धर्म की बेटी इन्द्र की साली काल की काली जोग की जोगिन, नागों की नागिन मन माने तो संग रमाई नहीं तो श्मशान फिरे अकेली ४ वीर अष्ट भैरी, घोर काली अघोर काली अजर बजर अमर काली भख जून निर्भय काली बला भख, दुष्ट को भख, काल भख पापी पाखण्डी को भख जती सती को रख, ओं काली तुम बाला ना वृद्धा, देव न दानव, नर या नारी देवीजी तुम तो हो परब्रह्मा काली |
क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं दक्षिणे हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा,

सतगुरु यंत्र अनहद चक्कर

सतगुरू यन्त्र (अनहद चक्र)

सहृदय नाता होता है, गुरू-शिष्य का भक्ति प्रेम श्रद्धा आद्रता होता है हृदय में। हृदय-प्राण-ज्योत से योग में चेतनता आती है। यह है हृदय का मन्त्र अर्थात अनहद चक्र अर्थात् सतगुरू यन्त्र। येगेश्वर योगावृढ ‍होता है। प्राण-अपान प्राणायाम से चित्त मे एकाग्रता लाता है और अपनी एकाग्रता हृदय स्थान मध्ये केंद्रित करता है जिसे अनाहद चक्र कहते हैं। इस चक्र का मुख नीचे है। बारह दल का कमल पुष्प पर विष्णु जी का चक्र विराजमान है। बीज शब्द कँ खँ गँ घँ ङँ चँ छँ जँ झँ टँ ठँ इन दलों पर होता है । तत्व वायु अर्थात प्राण अपाण है। तत्व का बीज यँ शब्द है। यन्त्र मध्ये मे सतगुरू यन्त्र जो मृगावाहन पर आरूढ़ है। खड़े त्रिकोण के ऊपर सतगुरू जी तथा देवता रूद्रनाथ जी (श्री) तथा शक्ति उमा देवी विराजमान है। अर्थात सतगुरू शब्द (मन्त्र) से रूद्र-उमा शक्ति ‍का मिलाकर योगी मह: लोक जाकर महानन्द कैवल्यानन्द प्राप्त करता है। धयान योग मे योगी षटकोण यन्त्र को खडदर्शन स्वरूप मे पार करना पडता है। अर्थात सतगुरू प्राप्ति दीक्षा शबद, (गुरू मन्त्र)-प्राप्ति के पश्चात कृपा आशीर्वाद से पूर्ण योग (दृढ़ता) में आता है। तब सतगुरू सपर्श गुण से शक्तिपात जहां पश्विम द्वार से निकली हुई ब्रह्मनाडी पर ब्रह्मा आरूढ़ है। जिससे ब्रह्मज्ञान प्राप्त होता है तथा उत्तर द्वार मे वज्रा और दक्षिण द्वार से निकली हुई चित्रिणी जाग्रत से योगी, ईशत्व सिद्धि को प्राप्त होता है तथा पीला-नीला-वृन्दा-शारदा जाग्रति से काव्य शक्ति बाला को प्राप्त करता है।
इस प्रकार योगेश्वर अपने योग में हृदय के ऊपर ध्यान केन्द्रित कराके पूर्ण समाधि में आनन्द उपभोगते हैं।

   
 
।। सतगुरू यन्त्र का मन्त्र ।।
  1. सत नमो आदेश। गुरू जी को आदेश। ॐगुरू जी। ॐआदि अनादि अखण्ड ज्योति। जोत जागे बिन बाती। सतगुरू शिव शक्ति मिल थापना थापी। ब्रह्माजी बैठे ब्रह्मनाडी, रूद्रनाथ जी संग उमा बैठी विषण चक्र, कमल के छत्र। मृगासन दिय बिछाय सतगुरू बैठे हृदय निवास । ॐ रूद्र नाथ जी का शंख बजे। अनहद नाद का डंका बाजे। ईश्वर गुरू देव ने मन्त्र फूंका। जपो मन्त्र काटो पाप सतगुरू सम्भालो अपना आप। गुरू शबद दीक्षा दीन्ही। इडा पिंगला जोगन भेटी। सुषम्ना मिल्या शिव घर शक्ति बैठी। ज्ञान गुरू मिलीया ज्ञान सिद्ध। पूरब पश्चिम दक्षिण उत्तर महालोक मे ईश सिद्ध। सतगुरू मन्त्र शक्ति बाला। रक्षा करे गुरू गोरखनाथ बाला। इतना मन्त्र जपे तपे सुमिरन करे। सो पर काया प्रवेश सिद्धि को पावे। जो ना करे सो भव सागर डूबे। इतना सतगुरू मन्त्र सम्पूर्ण भया। श्री नाक़ जी गुरू जी को आदेश।

अघोर गायत्री मंत्र

  1. सतनमो आदेश।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी मैं अघोरी सर्वरंगी।गुरु हमारे बहुरंगी।भूत प्रेत वैताल मेंरे संगी।डाकिनी शाकिनी अंग अंग में लगी।भूतनी प्रेतनी हाथ जोड़ पांव में पड़ी।चुड़ैल पिशाचिनी सेंवा में हाजिर हजूर खड़ी। अघोरी अघोरी भाई भाई।अघोरी साधो मढ़ी मसान के मांई।अघोरी की संगत करना।जिस संगत से पार उतरना।मढ़ी मसान से अघोरी आया।खुर खुर खावें।लुदर मांगे।आस पल के संग न जावें।गगन मण्डल में उनकी फेरी।काली नागिन उसकी चेली।उस नागिन पर अघोरी की छायां।अघोरी ने छायां से अघोर उपाया।अघोर से अघोरी हो कर ब्रम्ह चेताया।सेली सिंगी बटुआ लाया।बटुवें में काली नागिन।काली नागिन लाकर तलें बिछाई।तब अघोरी ने जुगत कमाई।रक्त गुलासी।शुद्ध गुलासी।केतु केतु हेरो भाई।ना किसी के भेलें जावें।ना किसी के भेलें खावें।मढ़ी मसान मेरा वासा।मैं छोड़ी कुल की आशा।अघोर अघोर महाअघोर।आदि शक्ति का भग वो भी अघोर।गौरी नन्द गणेश के शुभ लाभ वो भी अघोर।काली पुत्र काल भैरव का कपाल वो भी अघोर।अंजनी सुत हनुमान कि ललकार वो भी अघोर।ब्रम्हा जी के चार वेद छहः शास्त्र वो भी अघोर।वासुदेव श्री कृष्ण के छप्पन करोड़ यादव वो भी अघोर।देवाधिदेव महादेव के ग्यारह रुद्र वो भी अघोर।गौरां पार्वती माई की दस महाविद्या वो भी अघोर।कामदेव की रति वो भी अघोर।ब्रम्हऋषि वाल्मिकी जी की रामायण वो भी अघोर।महऋषि वेदव्यास जी की श्रीमद्भागवत गीता वो भी अघोर।गोस्वामी तुलसीदास जी की रामचरित मानस वो भी अघोर।माता पिता वो भी अघोर।गुरु शिष्य वो भी अघोर।मढ़ी मसान की राख वो भी अघोर।मुआ मुर्दा की ख़ाक वो भी अघोर।सदाशिव गुरू गोरक्ष नाथ जी ने अघोर गायत्री मंत्र सिद्ध गहनी नाथ जी को कान में सुनाया।अज्जर वज्जर किन्हें हाड़ चाम ,अमर किन्हीं सिद्ध गहनी नाथ जी की काया।आवें नहीं जावें नहीं।मरें नहीं जन्में नहीं।काल कभी नहीं खावें।मरें नहीं कभी घट पिण्ड ,सड़े नहीं नाद बिन्द की काया।शिव शक्ति ने अण्ड फोड़ ब्रम्हाण्ड रचाया।ले सिन्दूर लिलाट चढ़ाया।सिन्दूर सिन्दूर महासिन्दूर।महा सिन्दूर कहाँ से आया।कैलाश पर्वत से आया।कौन कौन ल्याया।गौरी नंद गणेश काली पुत्र काल भैरव अंजनी सुत हनुमान ल्याया।कौन कारण ल्याये।माता आदि शक्ति के कारण ल्याये।तेल तेल महातेल।देंखु रे सिन्दूर तेरी शक्ति का खेल।तेल में लेऊँ सिन्दूर मिलाय।बीच लिलाट बिंदी लेऊँ लगाय।भूत प्रेत बेरी दुश्मन के लगाऊँ वज्र शैल।एक सेवा से हनुमन्त ध्याऊँ।पकड़ भुजा काल भैरव की ल्याऊं।हथेली तो हनुमान बसे बिंदी बसे दुर्गा माई काल भैरव बसे कपाल।विभुति उलेटू विभुति पलेटु।विभुति का करूँ शिंणगार।आप लगायें धरती के मै लगाऊँ संसार।अवधूत दत्तात्रेय नाथ जी बोलें बंम बंम ओउमकार।माया मछिन्द्र नाथ जी ने ओउमकार का ध्यान लगाया।ओउमकार में अलख निरंजन निराकार।अलख निरंजन निराकार में पारब्रम्ह।पारब्रम्ह में कामधेनु गाय।कामधेनु गाय से उत्पन्न भई माता अघोर गायत्री।अघोर गायत्री अज़रा जरें।काट्या घाव भरें।अमिया पीवें।अभय मण्डल में रहन्ती।असँख्य रूप धरन्ती।साधु संतों को तारन्ती।अभेद कवच भेदन्ती।छल कपट छेदन्ती।लख चौरासी जिया जून से टालन्ती।अपने ग्वाल बाल को पालन्ती।इंद्री का श्राप टालन्ती।वैतरणी नदी से पार उतारन्ती।अघोर गायत्री माई सत्य सागरी।ओउम तरी।सोहंम तरी।रेवन्तरी।धावन्तरि।अजरावन्ती।वजरावन्ती।वासु मुनि के वचना दुर्वासा ऋषि के लार पडन्ती।अट्ठारह भार वनस्पति चरन्ती।गोचरी।अगोचरी।खेचरी।भूचरी।चाचरी।।सुमेरू पर्वत पर बैठन्ती।हूँ हूँ कार करन्ती।पंचमुख पसारन्ती।गंगा यमुना सरस्वती में खेलन्ती।अजपा जाप जपन्ती।सात हत्या पाप उतारन्ती।अघोर गायत्री अनहद में गाजे।काल पुरुष खाये तो गुरु गोरक्षनाथ लाजे।तार तार माता अघोर गायत्री तारिणी।सकल दुःख निवारिणी।बोलो बंम बंम।ॐ अघोराय विदमहे महाअघोराय धीमहि तन्नो अघोराय प्रचोदयात।इतना अघोर गायत्री मंत्र जाप सम्पूर्ण भया।शून्य की गादी बैठ राजा गोपीचन्द नाथ जी ने आपो आप सुनाया।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश                                                                                                                                                 ।आदेश।आदेश।

शिव गोरख योगी

सतनमो आदेश । श्री नाथ जी गुरु जी को आदेश । 
ॐ गुरु जी । 

कहो रे बालक किस मूण्डा किस मुण्डाया किसका भेजा नगरी आया । 

सतगुरु मुण्डा लेख मुण्डाया, गुरुं का भेजा नगरी आया । चेताऊ नगरी तारू गांव ,अलख पुरुष का सिमरू नाम । 

गुरु अविनाशी खेल रचाया, अगम निगम का पंथ बनाया । ज्ञान की गोदड़ी क्षमा की टोपी , जत का आडंबर - शील लंगोट । 

आकार खिन्था - निराश झोली , युक्ति का टोप - गुरु मुख की बोली । धर्म का चोला सत की सेली , मरी जात मेखले गले मे सेली ।

 ध्यान का बटुवा - निरत का सूईदान - ब्रह्म अचवा पहिने सुजान । बहुरंगी मोरदल - निर्लेप दृष्टि निर्भिजन डोरा न कोई सृष्टि । 

जाप जपोला , शिव सा दानी । सिंगी शब्द गुरु मुख को बानी । संतोष सूत - विवेक धागा , अनेक टिल्ली तहाँ जा लागा ।

 शर्म की मुद्रा - शिव विभूता , हर वक्त मृगयानी ले पहनी गुरु पूता ।

 सूरत की सुई - सतगुरु सेवे जो ले राखे निर्भय रहे , सेली कहे शील को राख - हर्ष शोक मन मे नही भाख । 

चोरी यारी निद्रा परि हरे । काम क्रोध मल सूत्र न धरे । इतना गोरक्षनाथ जी पंचमात्रा जाप सम्पूर्ण भया ।

 श्री नाथ जी गुरु जी को आदेश आदेश आदेश ।

                            ।। इति शुभम् ।।


गणेश मंत्र

गुरू माने मिलया पूरा भेद बतायाः मूल कमल पे गणपती बोले खटदल ब्रहम बिकाना ।अष्ट कमल पर विष्णु रूप है ,द्वादश शिव का थाना ।छे मूल पर त्रिकुटी रूप है झिलमिल जोत प्रकाशा ।पाँचो उलट अमीरस बरसे जहाँ हँस करे असनाना ।सात मूल पे सूरज दरसे वहां कोटि भानू प्रकाशा । अष्ट मूल पर चंदा रूप है ,वहां अमी का वासा ।नव मूल पर तारा दरसे वहीं शक्ति का वासा ।दस मूल पर ब्रहम का वासा जहां कोटि सूरज प्रकाशा ।शरण मछंदर गोरक्ष बोले उलट पलट मिल जाना ।।  ः वाणी ः तीरथ जाऊँ करूँ न तपस्या ,ना कोई देवल ध्याऊंगो । घडया घाट कदे न पूजूं ,अनघड़ देव मनाऊंगो । याद करो जद आऊं सतगुरू ,हुकम करो जद जाऊंग़ो ।हरिरस प्रेम प्याला पीकर,लाल मगन हो जाऊंगो ।मकड़ी मंदिर चढि सत धारो,ऐसी निवण लगाऊगो ।दसवे देस इकीसवे बिरमांड ,वहां पूग्या पद पाऊगो । गंगा जमना नहीं नहाऊं ,ना कोई तीरथ जाऊंगो ।इसी फकीरी गुरू फरमाई ,घर ही गंगा नहाऊगो ।जडी खाऊं ना बूटी खाऊं ना कोई वेद बुलाऊंगो ।नाडी का वेद सतगुरू देवा,वाने नबज दिखाऊंगो ।बस्ती बसूं न वन मे जाऊं ,भूखा रेण नपाऊगो ।इसी फकीरी गुरू फरमाई, रिदि सिद्वी ले घर आऊंगो।इगंला ना साजूं पिगंला न साजूं,त्रिकुटी ध्यान लगाऊगो ।शरण मछंदर गोरक्ष बोले, जोत मे जोत मिलाऊंगो।। 


پیر، 13 فروری، 2023

शिव स्वरोदय विज्ञान

मनचाही सन्तान प्राप्त करने तरीका बता रहा हूँ |  
जब किसी पुरुष का सूर्य स्वर चल रहा हो तथा स्त्री का चन्द्र स्वर चल रहा हो तो विषय भोग करने से यदि गर्भ ठहरता है तो अवश्य पुत्र रत्न प्राप्ति होती है, इसके विपरीत करने से पुत्री धन का गर्भ धारण होता है  

एक विशेष बात माना यह जाता है की स्त्री को मासिक स्राव बाद स्नान करने के पश्चात् चौथे दिन से लेकर सोलहवें दिन तक विषय भोग करने से ही गर्भ की प्राप्ति होती है | 

  • चौथी रात्रि को विषय भोग करने से अल्पायु तथा दरिद्र पुत्र की प्राप्ति होती है | 
  • पाँचवीं रात्रि को -  सुखदायक पुत्री की प्राप्ति 
  • छठीं रात्रि को   -  मध्यम आयु वाला पुत्र की प्राप्ति 
  • सातवीं रात्रि को -  बाँझ पुत्री की प्राप्ति 
  • आठवीं रात्रि को -  ऐश्वर्यवान पुत्र की प्राप्ति 
  • नौवीं रात्रि को  -  ऐश्वर्यवान पुत्री की प्राप्ति 
  • दसवीं रात्रि को  -  चालाक पुत्र की प्राप्ति 
  • ग्यारहवीं रात्रि को  - दुश्चरित्र पुत्री  प्राप्ति
  • बारहवीं रात्रि को  -  सर्वोत्तम पुत्र की प्राप्ति 
  • तेरहवीं रात्रि को  -   वर्णसंकर  कोखवाली पुत्री की प्राप्ति 
  • चौदहवीं रात्रि को   - सभी गुणों से सम्पन्न पुत्र की प्राप्ति 
  • पन्द्रहवीं रात्रि को  -  भाग्यशाली पुत्री की प्राप्ति 
  • सोलहवीं रात्रि को  -  सबसे उत्तम पुत्र की प्राप्ति   

ये प्रयोग बहुत ही उपयोगी है आजमा के देखें

ہفتہ، 11 فروری، 2023

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शिव स्वरोदय से करे सपनो को साकार

स्वरोदय विज्ञान

शिव स्वरोदय से करे अपने सपनो को साकार और साथ ही पाए रोगों से निजात 
( Make Your Dreams In Reality by Shiv Swarodya )

स्वरोदय अर्थात नाक के छिद्रों से ग्रहण किया जाने वाला साँस जो कि हवा की शक्ल में होता हैं ।
शिव स्वरोदय से करे अपने सपनो को साकार और साथ ही पाए रोगों से निजात ( Make Your Dreams In Reality by Shiv Swarodya )
शिव स्वरोदय

विज्ञान अर्थात जहाँ पर किसी विषय की सभी बातों का अध्ययन किया जाता हैं ।

जन्मान्तरीयसंस्कारारात्प्रसादादथवा गुरो: ।
केषचिंज्जायते तत्ववासना विमलात्मनाम ।।

अर्थात - कई जन्मों के शुभ संस्कारो के कारण ही स्वरोदय विज्ञान का गुरू मिलता है और शुद्ध स्वच्छ आत्मा वाले व्यक्ति ही इसे समझने की चेष्टा करते है ।



स्वरोदय विज्ञान एक अत्यंत आसान प्रणाली हैं जिसे प्रत्येक मनुष्य समझ कर अपने दैनिक जीवन में प्रयोग कर सकता हैं । शिव स्वरोदय शिव और पार्वती के बीच हुआ संवाद है शिवजी इस विषय पर पार्वती से कहते है कि अनेक जन्मों में किए गए शुभ कर्मों के कारण ही मनुष्य को स्वरोदय का ज्ञान होता हैं और इसके प्रति रुचि बढ़ती है और वह इसे समझने का प्रयास करता है ।





इस विज्ञान का लाभ पाने के लिए अत्यंत सरल व सुविधाजनक क्रियाये है । आपको केवल कुछ अनुभव करने हैं और वह सभी अनुभव आपको सबसे पहले अपने नाक के द्वारा करने होंगे । आप कुछ भी कर रहे हो , आपको अपने नासाछिद्र से चलने वाली हवा रूपी सांस का अनुभव करना है । आप अभ्यास करने के दौरान पाएंगे कि कभी नाक के दाहिने छिद्र से सांस ली जाती हैं तथा छोड़ी जाती हैं और कभी बाएं नासाछिद्र के द्वारा सांस का लिया जाना तथा छोड़ा जाना होता हैं । कभी - कभी आपको लगेगा कि नाक के दोनों छिद्रों से ही सांस की क्रिया चल रही हैं , यही आपको अनुभव करना है ।




सांस जीव का प्राण है और इसी सांस को स्वर कहा जाता हैं । इस स्वर के चलने की क्रिया को उदय होना मानकर स्वरोदय कहा जाता हैं । इसी सांस के द्वारा प्रत्येक जीव के प्राण स्थिर होते है । दूसरे शब्दों में कहा जाए तो यही सांस प्रत्येक जीव का प्राण है । सांस की क्रिया के बंद हो जाने पर जीव को मृत घोषित कर दिया जाता हैं । अतः समझा जा सकता हैं कि प्रत्येक जीव के लिये साँस की क्रिया अत्यंत आवश्यक क्रिया है और जीवन का ठहराव इसी के बलबूते पर होता हैं ।

स्वर

नाक के दाहिने छिद्र से चलने वाले स्वर को सूर्य स्वर कहते है ।
नाक के बाएं छिद्र से चलने वाले स्वर को चंद्र स्वर कहते है ।
नाक के दोनों छिद्रों से चलने वाली सांस को सुषुम्ना कहते है 



सूर्य स्वर ( पिंगला ) साक्षात शिव स्वरूप है ।

चन्द्र स्वर ( इड़ा ) साक्षात पार्वती स्वरूप है ।
सुषुम्ना स्वर साक्षात काल स्वरूप हैं ।



हमारा शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना हुआ है ।। जिसे पृथ्वी तत्व , जल तत्व , वायु तत्व , अग्नि तत्व तथा आकाश तत्व कहा जाता हैं । हमारे हाथों की पांचो अंगुलियां इन्ही तत्वों का प्रतीक हैं । यह तत्व सदा हमारे साथ चलते रहते है 





सवरोदय विज्ञान भारत की अत्यंत प्राचीन तथा महा विद्या है । एक समय ऐसा भी था कि भारत के घर - घर मे इस विद्या की पूजा तथा इसके प्रयोग किये जाते थे । इसी समय को स्वर्णकाल कहा गया क्योंकि इस काल मे कोई दुख नही थे । कोई समस्या नही थी । प्रतिदिन स्वरोदय का अभ्यास किया जाता था । सभी सुखी थे । सभी सुविधाएं थी । इसकी महिमा को संत समुदाय ने भी स्वीकारा और इस पर अनगिनत प्रयोग किये गए ।





इड़ा चंद्रमा में तथा पिंगला सूर्य ग्रह में निवास करती हैं सुषुम्ना इन दोनों ग्रहों के बीच निवास करती है । जब चंद्र और सूर्य का सहज और समान रूप से उदय हो जाता है तो शून्य में शब्द का प्रकाश होता है । मन मे अजर अमृत झरने लगता है और सुखरूपी अमृत का आस्वादन होने लगता है 

' इड़ा पिंगला शोधन करिके , पकड़ो सुखमन डगरी ।
पाँच को मारि , पच्चीस वश कीन्हो , जीत लिये नौ नगरी ।।

स्वरूप प्रकाश के तेरह पृष्ट के इस श्लोक का अर्थ है पाँच को मारि अर्थात तत्व पाँच होते हैं , इन्हें मारो । पच्चीस वश कीन्हा अर्थात पच्चीस प्रकृतियाँ होती है , इन्हें वश में करो । जीत लिए नौ नगरीअर्थात नौ नगरी कहा गया है , नव द्वारो को । इन नव द्वारो को जीत लिया

भजन रत्नमाला के पृष्ठ 19 तथा 20 पर स्वरोदय के विषय मे कहा गया है कि 


सोहंग शब्द विचार के , वोहंग में बन लाई ।
इंगला पिंगला दोनों द्वार है , सुखमन में ठहराई ।।

स्वरोदय को जानकर आप क्या - क्या कर सकते हो -

  • आप रोग नाश कर सकते हैं ।
  • आप साधना सिद्ध कर सकते हैं ।
  • आप जिसे चाहे वश में कर सकते हैं ।
  • आप शिव से साक्षात्कार कर सकते हैं ।
  • आप परीक्षा में पास हो सकते हैं ।
  • आप इच्छानुसार गर्भधान कर सकते हैं ।
  • आप जैसा चाहे लाभ उठा सकते हैं ।
शिव स्वरोदय से करे अपने सपनो को साकार और साथ ही पाए रोगों से निजात ( Make Your Dreams In Reality by Shiv Swarodya )
स्वरोदय के प्रयोग

स्वरोदय के प्रयोग

1 - सोते समय चित्त होकर न सोए क्योकि इसमे सुषुम्ना स्वर चलने लगता हैं । सुषुम्ना स्वर के चलने पर कार्यो में ही विघ्न नही आते बल्कि रात्रि को नींद भी ठीक नही आती और स्वप्न भी डरावने आते है ।




2 - भोजन को सदा सूर्य स्वर में ही ग्रहण करे । भोजन के बाद कम से कम आधा घंटा आराम करे । भोजन के बाद आराम करने के लिए लेटे तो सर्वप्रथम बाईँ करवट से लेटे इसके बाद दाहिनी करवट लेटे इस प्रकार करने से भोजन आसानी से पच जाता हैं ।


3 - भोजन के पश्चात तुरंत मूत्र त्याग करे । मूत्र त्याग हमेशा बाएँ स्वर में करे ।


4 - दाएँ स्वर में मल त्याग करें ।

प्रकृति का विधान

  • एक नवजात शिशु अपनी आयु के प्रथम वर्ष तक बाँए स्वर में मूत्र त्याग करता है और दाएँ स्वर में मल त्याग करता है । जिसके कारण वह पूर्णतः स्वस्थ रहता है ।

  • दांत निकलने के समय जब दर्द होता हैं तभी उसकी यह स्वर प्रक्रिया भंग हो जाती है , जिसके कारण वह तकलीफ उठाता हैं ।

  • शिशु को तांबे का कड़ा ( चूड़ी ) पहनाने से दाँत सरलता से निकलते है । ऐसा क्यों ? ताम्बा सूर्य तथा मंगल की धातु हैं अर्थात ताम्बा गर्म प्रभाव रखता हैं । अतः जब इसे धारण किया जाता हैं तो शरीर मे उष्णता बढ़ जाती हैं । जिसके कारण सूर्य स्वर अधिक चलता रहता हैं । उल्टी तथा दस्त आदि के कारण शरीर कमजोर होकर शीतल हो जाता हैं । ऐसे समय मे सूर्य स्वर की अत्यधिक आवश्यकता होती हैं जिससे कि शरीर का तापक्रम बना रहे इसी कारण बच्चो को तांबे का कड़ा धारण कराया जाता है ।

  • सूर्य स्वर से गर्मी की प्राप्ति होती हैं तथा चंद्र स्वर से शीतलता प्राप्त होती हैं । रात में वातावरण शीतल होता हैं अतः सूर्य स्वर को चलाना चाहिए जबकि दिन में वातावरण गर्म होता हैं तब चंद्र स्वर चलना चाहिए ।

  • जब किसी रोग ने आपको घेर लिया है तो आप स्वर विज्ञान के सहारे बहुत ही शीघ्र रोग को समाप्त कर सकते है । रोग होते ही अपने स्वर को देखे की कौन सा चल रहा है । यह अनुभव करके दूसरा स्वर चला दे और इसे चलाते ही रहे । आप स्वयं ही अनुभव करेंगे कि रोग की शक्ति कम होती जा रही है और रोग समाप्त हो रहा है ।

  • कैसा भी रोग हो स्वर बदलने से शांत हो जाता हैं बस आपको रोगों की प्रकृति को समझना होगा कि कौन सा रोग सर्दी से हैं तथा कौन सा रोग गर्मी से है । इस प्रकार सर्दी के रोगों में सूर्य स्वर चलाये और गर्मी के रोगों में चंद्र स्वर को चला दे ।

स्वरोदय से औषधि का निर्माण

 

  • स्वरोदय औषधि वास्तव में कोई औषधि नही है बल्कि पानी मात्र है । इसे तैयार करने तथा संभाल कर रखने के लिए लाल रंग की तथा सफेद रंग की शीशी की आवश्यकता होगी ।

  • सर्वप्रथम आप एक कांसे के पात्र में जल भर करके अपनी नाक के पास ला करके नाक से आठ या दस इंच दूर रख करके जल को टकटकी लगाकर देखते रहे तथा अपनी सांस की हवा को जल तक पहुंचने दे । यह क्रिया स्वस्थ व्यक्ति ही करे । लगभग 15 मिनट बाद इस जल को शीशी में रख ले ।

  • सावधानी चंद्र स्वर में अलग जल तैयार होगा तथा सूर्य स्वर में अलग जल बनेगा । इन्हें आपस मे न मिलाये । सूर्य स्वर से तैयार जल को लाल शिशी में रख ले और चंद्र स्वर वाले जल को सफेद शीशी में । अब इस जल से आप किसी की भी चिकित्सा कर सकते हैं ।

औषधि प्रयोग

  • उपरोक्त बनाई गई औषधि तीन दिन तक शक्तिकृत रहती है 
    शितजनित रोगों में सूर्य स्वर चलवा करके लाल शीशी से आधा कप जल पिलायें । एक - एक घंटे के अंतर से चार खुराकें दे दे । आप स्वयं ही अनुभव करेंगे कि कितने शीघ्र ही यह औषधि रूपी जल रोग का नाश कर डालता है ।

  • गर्मी जनित रोगों में सफेद शीशी वाला जल चंद्र स्वर चला करके एक - एक घंटे के अंतर से चार खुराक दे अवश्य ही लाभ होगा ।

शिव स्वरोदय से करे अपने सपनो को साकार और साथ ही पाए रोगों से निजात ( Make Your Dreams In Reality by Shiv Swarodya )
स्वरोदय से इच्छीत सन्तान की प्राप्ति

स्वरोदय से इच्छीत संतान की प्राप्ति

  • सभी शास्त्रों में मनचाही संतान प्राप्त करने के उपाय बताए गए है यदि किसी को लड़कियाँ ही जन्मती हो तो पुत्र की प्राप्ति तथा जिसे पुत्र ही जन्मते हो तो पुत्री की इच्छा 

  • जब पुरूष का सूर्य स्वर चल रहा हो और स्त्री का चन्द्र स्वर चल रहा हो तो विषय भोग करने से यदि गर्भ ठहरेगा तो पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी । इस स्तिथि में उल्टा करने से कन्या का गर्भाधान होता हैं ।

  • यह माना जाता हैं कि स्त्री को मासिक स्त्राव के बाद स्नान करने के पश्च्यात चौथे दिन से सोलहवें दिन तक विषय भोग करने से गर्भ की प्राप्ति होती हैं ।

पुराणों के अनुसार यह कथन है कि मासिक स्नान के पश्चात -


  • चौथी रात्री को विषयभोग करने से अल्पायु तथा दरिद्री पुत्र होता हैं 



  • पाँचवी रात्रि में - सुखदायक पुत्री



  • छठी रात्रि में - मध्यम आयु वाला पुत्र



  • सातवी रात्रि में - बाँझ पुत्री



  • आठवीं रात्रि में - ऐश्वर्यवान पुत्र

  • नवीं रात्रि में - ऐशर्व्यवती पुत्री



  • दसवीं रात्रि में - चालाक पुत्र



  • ग्यारहवी रात्रि में - दुश्चरित्र पुत्री



  • बारहवीं रात्रि में - सर्वोत्तम पुत्र



  • तेरहवीं रात्रि में - वर्णसंकर ? कोखवाली पुत्री



  • चौदहवीं रात्रि में - सर्वगुण सम्पन्न पुत्र



  • पंद्रहवीं रात्रि में - भाग्यशाली पुत्री



  • सोलहवीं रात्रि में - सभी भांति से उत्तम पुत्र का गर्भाधान होकर निश्चित समय पर सन्तान की प्राप्ति होती हैं ।


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