پیر، 26 فروری، 2024

कीलन मंतर

मण्डल,मनुष्य का संबंध,चरित्र,विचार,भावनाये सब कुछ तो तंत्र से ही चल रहा है;जिसे हम जीवन तंत्र कहेते है॰जीवन मे कोई घटना आपको सूचना देकर नहीं आता है,क्योके सामान्य व्यक्ति मे इतना अधिक सामर्थ्य नहीं होता है के वह काल के गति को पहेचान सके,भविष्य का उसको ज्ञान हो,समय चक्र उसके अधीन हो ये बाते संभव ही नहीं,इसलिये हमे तंत्र की शक्ति को समजना आवश्यक है यही इस ब्लॉग का उद्देश्य ह
सर्व-्रसिद्धी.(एवं तंत्र बाधा निवारण साधना).
किसी भी शाबर मंत्र को सिद्ध करने के लिये एक विधी-विधान दे रहा हू और साथ मे तंत्र बाधा निवारण का मंत्र दे रहा हू.प्रत्येक शाबर मंत्र के जाप से पूर्व निम्न प्रकार का विधी करे तो अवश्य ही सफलता मिलने हेतु विधी से मदत मिलता है.यह विधी करने से नवनाथ भगवान का विशेष कृपा प्राप्त होता है और मंत्र सिद्ध हो जाते है.

सर्वार्थ साधक मंत्र गुरू मंत्र के तराहा ही कल्पवृक्ष है जो किसी भी शाबर मंत्र मे सफलता देने हेतु साहाय्यक माना जाता है.

सर्वार्थ साधक मंत्र की 21 बार जप करे,

मंत्र-

|| गुरु सठ गुरु सठ गुरु है वीर, गुरु साहब सुमरौ बड़ी भांत,सिङ्गि टोरों बन कहौं,मन नाऊ करतार सकल गुरु की हर भजे, घट्टा पाकर उठ जाग चेत सम्भार श्री परम हंस ||

इस के बाद देह रक्षा की मंत्र 11बार पढे ताकी आपको किसी भी शत्की से कोई हानी ना हो.

देह रक्षा मंत्र-

||जीवन मरण है तेरो हात ,भैरो वीर तू हो
जा मेरे साथ,रखियो वीर तुम भक्त की लाज , बिगाड़ न पावे कोई मेरो काज,दुहाई लूना चमारिन की दुहाई कामख्या माई की दुहाई गौरा पार्वती की चौरासी सिद्धो को आदेश आदेश आदेश ||

इस के बाद आसन किलन मंत्र का जाप 11 बार करे और आसन का पुजन करे.

आसन किलन मंत्र-

||धरती किलूं पाताल किलूं , किलूं सातो आसमान , चौरासी सिद्धों के आदेश से आसन किलूं ना हो अपमान,लूना चमारिन की आन है गुरु गोरख की यह शान है||

इस के बाद एक लोहे का किल लेकर
अपने चारो और गोल घेर बना ले जिससे आपका सुरक्षा होगा.

घेर मंत्र-

||जो घेड़ा तोड़ घर मह घुसे ;रक्त काली उसका रक्त चुसे,दुहाई माँ कामख्या की,दुहाई माँ कामख्या की,दुहाई माँ कामख्या की||

इस के बाद दशो दिशाओं को बांध दे ताकी साधना मे कोई बाधा उत्पन्न ना हो और इसके लिये मंत्र बोलते हुए अष्टगंध से मिश्रित चावल को दसो दिशा मे एक-एक बार मंत्र बोलते हुए छीडकना है.

दिशा बांधने का मंत्र-

||ॐ वज्र क्रोधाय महा दन्ताय दश दिशों बंध बंध हुं फट स्वाहा||

अब एक आसन बिछा के उसके उपर एक बाजोट रखे और बाजोट के ऊपर एक थाली की ऊपर नौ पान की पत्ते और पत्ते की उपर नौ दीपक,बिच में एक गोल पात्र जिसमे धुनी जलाया जा सके ठीक वैसा ही करना है. पान के पत्ते पे एक एक सुपारी लौंग, इलाइची,पतासे और एक रूपया का सिक्का रखे दे,दीपक में घी या मीठा तेल डाल कर धूप बत्ती लगा के रखे बीच में धुनी जलादे और धुनी जलाते वक्त यह मंत्र पढे.

धुनी मंत्र-

|| धुनी धरे-धुआं करे,,तोह नव नाथ पधारे जो नाथ ना पधारे तोह शिव की जटा टूट भूमि में पड़े अदेश आदेश नव नाथों को आदेश ||

अब नौ दीपक को एक एक श्लोक पढ़ते हुए एक एक कर जलाये-

श्लोक 1.
आदिनाथ आकाश सम,सूक्ष्म रूप ॐकार तिन लोक में हो रहा,अपनी जय जय कार.

श्लोक 2.
उदय नाथ तुम पार्वती,प्राण नाथ भी आप धरती रूप सु जानिए मिटे त्रिबिध भव ताप

श्लोक 3.
सत्य नाथ है सृष्टि पति,जिनका है जल रूप,नमन करत है आपको स चराचर के भूप.

श्लोक 4.
विष्णु तो संतोष नाथ खांड़ा खड़ग स्वरूप राज सम दिव्य तेज है तिन लोक का भूप.

श्लोक 5 .
शेष रूप है आपका ,अचल अचम्भे नाथ आदि नाथ के आप प्रिय सदा रहे उन साथ

श्लोक 6.
गज-वली गज के रूप है .गण पति कन्थभ नाथ,देवो में है अग्र तम सब ही जोड़े हाथ

श्लोक 7.
ज्ञान पारखी सिद्ध है ,चन्द्र चौरंगी नाथ,जिनका वन-पति रूप है उन्हें नामाऊ माथ.

श्लोक 8.
माया रूपी आप है,दादा मछ्न्द्र नाथ,रखूं चरण में आपके ,करो कृपा मम माथ.

श्लोक 9.
शिव गोरक्ष शिव रूप है,घट-घट जिनका वास ,ज्योति रूप में आपने किया योग प्रकाश.

अब आप धुनी और दीपकों को जला चुके
है.अब् नव नाथ स्वरुप का ध्यान करके आशीर्वाद प्राप्त करे.

नवनाथ ध्यान मंत्र-

|| अदि नाथ सदा शिव है जिनका आकाश रूप,उदय नाथ पार्वती पृथ्वी रूप जानिए,सत्य नाथ ब्रह्मा जी जल रूप जानिए,विष्णु संतोष नाथ तिनका रूप मानिये,अचल है अचम्भे नाथ जिनका है शेष रूप,गजवली क्न्थभ नाथ हस्ती रूप मानिये,ज्ञान पारखी जो सिद्ध है वोह चौरंगी नाथ,अठार भर वनस्पति चन्द्र रूप जानिए,दादा गुरु श्री मछन्द्र नाथ जिनका है माया रूप,गुरु श्री गोरक्ष नाथ ज्योति रूप जानिए,बाल है त्रिलोक नव-नाथ को नमन करूँ,नाथ जी ये बाल को अपना ही जानिए ||

अब एक अद्वितीय तंत्र,मंत्र,यंत्र,जन्त्र,बंधन दोष एवं सर्व बाधा निवारण मंत्र दे रहा हु-

अभिचार-कर्म नाशक मंत्र-

ll राम नाम लेकर हनुमान चले,कहा चले चौकी बिठाने चले,चौकी बिठाके रात की विद्या दिन की विद्या चारो प्रहर की विद्या काटे हनुमान जती,मंत्र बाँध तंत्र बाँध जन्त्र बाँध रगड के बाँध,मेरी आण मेरे गुरू की आण,छु वाचापुरी ll

मंत्र का रोज मंगलवार से 108 बार जाप 21 दिन करना है.शाबर मंत्रो मे बाकी नियम नही होते है.मंत्र सिद्ध होगा & बभुत पर मंत्र को 11 बार पढकर 3 फुंक लगाये.अब बभुत को जिसपर तंत्र बाधा हो उसके माथे पर लगा दे तो पीडित के कष्ट दुर हो जायेगा.इस मंत्र से चौकी भी लगता है,बाधा भी कटता है और बंधन भी लगाया जाता है.यह हनुमत मंत्र मुझे गुरूमुख से प्राप्त हुआ है जो इस दुनिया के किसी भी किताब मे नही है.इस मंत्र से झाडा भी लगा सकते है

आदेश।।

काल भैरव मन्त्र

काल भैरव मन्त्र

सतनमो आदेश।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी काला काला काला खप्परें मूढ़े वाला।ब्रम्हबली काल भैरव जति सती।कालें कुकर की सवारी।मैं काल भैरव का वीर पुजारी।लख लख कोट लख लख खाई।चल काल भैरव की चील चबाती जलें बलें आईं।कहे लोना चमारिन बधे तिल न घटे राई।काल भैरव की दुहाई।काल भैरव की दुहाई।काल भैरव की दुहाई।गुरु गोरक्षनाथ जी की माईं।चलें काल भैरव नारी रूपा।चलें काल भैरव पुरुष रूपा।चलें काल भैरव बालक रुपा।ॐ काल कंकाल महाकालाय विदमहे काल पुरुषाय धीमहि तन्नो काशी कोतवाल काल भैरवाय प्रचोदयात।इतना काल भैरव मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

काल भैरव वीर सिद्धि का मन्त्र

काल भैरव वीर सिद्धि का मन्त्र

सतनमो आदेश।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी चेत सुना सान।औंधी खोपड़ी मरघटिया मसान।बाँध दे रामदूत हनुमान।काल भैरव खड़ा बीच मढ़ी मसान।कानों कुण्डल हाथ त्रिशुल कपाल।बंम बंम काल भैरव नाथ।जहाँ सुमरुँ काल भैरव वहाँ त्यार।इतना काल भैरव मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया।शून्य की गादी बैठ गुरु गोरक्षनाथ जी ने आपो आप सुनाया।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

मुहम्मद पीर का मन्त्र

मुहम्मद पीर का मन्त्र

सतनमो आदेश।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी विस्मिल्लाह अर रहमान निर रहीम।लाइल्लाह इललिल्लाह।मुहम्मद रसुलिल्लाह।गढ़ गजनी से चलें मुहम्मद पीर।मुहम्मद पीर हुँकारता चलें।मुहम्मद पीर गाजता चलें।मुहम्मद पीर घोरता चलें।चल रें चल मुहम्मद पीर चल।सवा सेर का तोसा खाये।अस्सी कोस का धावा लगाय।श्वेत घोड़ा श्वेत पलान।जिस पर चढ़े मुहम्मद पीर सैय्यद पठान।माथे टोपी पाँव रेशमी जूती हाथ तलवार।चल रे चल गढ़ गजनी के मुहम्मद पीर।तेरे समान नहीं कोई वीर।परी जिन्नात को लावैं।चोर चुड़ैल पिशाच को लावें।भूत प्रेत शैतान को लावैं।डंकिनी शंकिनी लंकिनी को लावैं।काँचा कलुआ जिन्द खईस वैताल को लावैं।सात समुद्रों की खाई से लावैं।ब्रम्हा जी के वेदों से लावैं।काजी की कुरआन से लावैं।मुल्ला की बांग लावैं।मक्का मदीना के काबे से लावैं।मन्दिर मठ के तख्त से लावैं।जाओ जाओ जहाँ हो तहाँ से लावैं।गढ़ से किला से कोट से पर्वत से लावैं।गली मुहल्ला चौराहे से लावैं।खेत खलिहान कुढ़े से लावैं।बाग बग़ीचा बाड़ी से लावैं।बारह आभूषण सोलह श्रृंगार से लावैं।हाट बाजार चोकटी से लावैं।कुआ बावड़ी तालाब पोखर से लावैं।मढ़ी मसान चौपटा से लावैं।जलती चिता मुआ मुर्दा कफ़न कब्रिस्तान कब्र दरगाह से लावैं।खाट से पाया से डण्डे से मुज के बाण से लावैं।नवनाड़ी बहत्तर कोठा की घूमती बलाय को लावैं।हाजिर करें।हाड़ हाड़ से।चाम चाम से।नख सिख से।रोम रोम से।घट पिण्ड से लावैं रे।ताईयां सिलार जिन्द पीर मारतो पीटतो तोड़तो पछाड़तो।हाथ हथकड़ी पाँव में बेड़ी।गले में तोक उलटा कब्जा चढ़ाय।मुख बुलाय।सीस खिलाय।शब्द साँचा पिण्ड काँचा।फुरों मन्त्र गुरु गोरक्षनाथ वाचा।सत्यनाम आदेश गुरु का।

विष निवारण मन्त्र

विष निवारण मन्त्र

सतनमो आदेश।श्रीनाथजी गुरुजी की आदेश।ॐ गुरुजी काला साँप पीला बिच्छू।गोहिरा नेवला खड़खड़ाया।महादेव जी कोरा घड़ा अमृत से ला भरा।हनुमान जी ने माता गौरां पार्वती देवी के आगे ला धरा।गौरां पार्वती देवी मल मल नाहवन लागी।काला साँप पीला बिच्छू गोहिरा नेवला का ज़हर पाताल की मनसा देवी पीवन लागी।गुरु गोरक्षनाथ जी की दुहाई।माया मछिन्द्रनाथ जी की दुहाई।शब्द साँचा पिण्ड काँचा।फुरों मन्त्र ईश्वरों वाचा।सत्यनाम आदेश गुरु का।

देवी लंकेश्वरी सिद्धी

देवी लंकेश्वरी सिद्धी

श्री लंकेश्वरी देवी

सतनमो आदेश।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी आदि देवी युगादि देवी।लंकापुरी की लंकेश्वरी देवी।किया हमारा कीजिये।नवखण्ड पृथ्वी में पहरा दीजिये।लंकेश्वरी देवी तूं आदिशक्ति।आसन बाँधो मढ़ी मसाण बैठी।हाड़ की कोठी चाम की मढ़ी।जहाँ सुमरूँ वहाँ लंकेश्वरी देवी हाजिर हजूर खड़ी।दक्षिण दिशा से लंकेश्वरी देवी आई।हाथ कंगन कानों कुण्डल माथें बिंदियां पगा नेवर। सिर काली जटा गले काला नाग मुण्डमाला हाथ त्रिशुल खप्पर।सिर के केश बखेरती आई।बैरी दुश्मन को पटकती आई।देव दानव राक्षस को पछाड़ती आई।पापी पाखण्डी चोर को पकड़ती आई।कच्चा पक्का मढ़ी मसाण खाती आई।भींत के भड़भेटा देती आई।सार का चना चबाती आई।लोहे का टुकड़ा करती आई। तार तार माता लंकेश्वरी देवी तार।कभी न खायें इस जीव को काल।लंकेश्वरी देवी हो प्रचण्ड।मावस ऊपर पड़वा ढ़ले।राजा गोपीचन्द राजा भृतहरि तेरा ध्यान धरें।गौरी नन्द गणेश जगा काली पुत्र काल भैरव को जगाऊँ और जगाऊँ अंजनी सुत हनुमान।गुरु गोरक्ष नाथ के चरणों में शीश नवा आदिशक्ति लंकेश्वरी देवी को जगाऊँ औऱ मैं सेवूं चौपटा मढ़ी मसान।चार कोस के भूत प्रेत जिन्द कसाई बाँधूं बाँधे ज़मीन आसमान।आठ कोस की डंकिनी शंकिनी चुड़ैल बाँधूं बाँधे मुहम्मद अली रहमान।लंकेश्वरी देवी को कौंन ध्याया।लंकापुरी के राजा दशानन रावण औऱ कुम्भकर्ण मेंघनाद ध्याया।लंकेश्वरी देवी आई।हाथ खड़्ग खप्पर अघोर जंजीर लाई।गाजती आई।किलकिलाती आई।मढ़ी मसाण में मुर्दे फाड़ती आई।साथ में ऋद्धि बुद्धि का स्वामी गणेश जी औऱ अंजनी सुत हनुमान जी आया।संग में काली पुत्र काल भैरव आया।सवामण का खड़्ग औऱ मसानी जंजीर लाया।सतवंती मंदोदरी देवी औऱ सुलोचना आई।बाँध बाँध पैरों में बेड़ी।हाथों में हथकड़ी बाँध।गलें में जंजीर आंखों पे पट्टी डाल।काँचा बाँध कलुआ बाँध मूठ बाँध मुठ्यारा बाँध चौकी बाँध आसन बाँध पितृ बाँध यक्ष बाँध गन्धर्व बाँध किन्नर बाँध मैली बाँध कुचैली बाँध परी बाँध जिन्नात बाँध।भागे को पकड़ लाये।रूठे को मनाया लाये।गढ़े धन को दिखाय दे।चोर को बताय दे।रणभूमि में शत्रु को गिराय दे।इतना काम लंकेश्वरी देवी हमारे गुरु हमारा का करें।जागो लंकेश्वरी देवी माई।उठो लंकेश्वरी देवी माई।नहीं जागो तो महादेव जी की करोड़ करोड़ दुहाई।नहीं उठो तो माता गौरां पार्वती देवी की लाख लाख दुहाई।वाचा छोड़ कुवाचा करें।तो कपूरी धोबिन की नाँद लोना चमारि के कुंडे में पड़े।हमारा इतना काम नहीं करें।तो राजा रामचन्द्र लक्ष्मण जति सती सीता माई की कोटि कोटि दुहाई फिरें।शब्द साँचा पिण्ड काँचा फुरों मंत्र ईश्वरो वाचा।सत्यनाम आदेश गुरु का।

अवधुत गायञी

अवधुत गायञी

अवधूत गायत्री मंत्र :- यह गायत्री मंत्र अघोर क्रिया का हैं अतः कोई भी सज्जन बिना सतगुरु मार्गदर्शन में नहीं करें।

सतनमो आदेश।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी अवधूत अवधूत भाई भाई।अवधूत खोजों घट के मांही।एक अवधूत का सकल पसारा।एक अवधूत सभी से न्यारा।उस अवधूत की संगत करना।जिस संगति से पार उतरना।उत्तराखण्ड से योगी आया।ऊँचे चढ़ के नाद बजाया।नाद बजा के ब्रम्ह जगाया।ऐसा योगी कभी नहीं आया।शैली सिंगी बटुआ लाया।बटुवें में काली नागिन।काली नागिन किसकी चेली।गगन मण्डल में फिरें अकेली।काली नागिन को मार कर तलें बिछालो मेरें भाई।तब न होगी आवा जाई।हम बिगड़े सो बिगड़े भाई।तुम बिगड़े सो राम दुहाई।हमारे सतगुरु तो बहुरंगी।सबके संगी।सबका भेद बतायेंगे।अनघड़ के चेले रहे अकेलें।जति सती को शीश नवायेंगे।इस विधि दुनिया को योगी कहलायेंगे।पात्र फोड़ पवित्र कर लूं हाकिम का मुँह काला कर दूं।राजा कर दूं भैसा।मढ़ी कब्रिस्तान दला डूंगरा।रुख वृक्ष की छायां।सुन रे हँसा कहाँ से आया।तीन लोक चौदह भुवन सप्त पाताल से आया।सब कुल की लज्जा मिटा।सब घर भिक्षा लेनें जा।कोढ़ी कपटी से कैसे जीते।कैसे हारें।हिंदु तुर्क एक ही जानें।चलती पवन रोक दूँ।धरती उलट दुं।आसमान पलट दुं।रोड़िया खोड़ीया टुंडीया हाथी नोबत कर दूं।उलटी ख़ाक।रस्ता सुरसरी मुरसरी।योगेश्वर बढ़े योग के ध्यान।कौंन चेला लोभी लालची।आडलो कपड़ा दूध का दूध।पानी का पानी।सिद्ध का मार्ग साधक कर जानी।इतना अवधूत गायत्री मंत्र जाप सम्पूर्ण भया।गंगा गोदावरी त्र्यम्बकं क्षेत्र कोलागढ़ पर्वत की अनुपान शिला पर सिद्धासन बैठ श्री सदाशिव शम्भुजति गुरु गोरक्षनाथ जी ने नवनाथ चौरासी सिद्ध अनन्त कोटि सिद्धों को पढ़ कथ कर सुनाया।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

धुनी गायञी मंञ

धुनी गायञी मंञ

धूणी गायत्री मंत्र

सतनमो आदेश।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी प्रथमें सुमरुं श्री बाल योगी सदाशिव शम्भुजति गुरु गोरक्ष नाथ योगी।गुरु गोरक्ष नाथ के दोऊँ चेलें हाट नाथ वाट नाथ दग दग धरती।प्रचण्ड धूणी आग्नि का कोट पवन की खाई।अलख पुरुष की सेज विछाई।बाला योगी पोढ़ न आयें।ऊँचे चढ़ कर नाद बजायें।कानों कुण्डल सिर जटा।हाथ चिमटा त्रिशुल फावड़ी काँधे लता।नवनाथ चौरासी सिद्ध तैतीस कोटी देवी देवताओं ने मिलकर किया धूणी पाणी का मता।धूणी का पोट अग्नि का कोट।धुयें का गोला।तीनों पुरुष रक समान ।न जलें धरती न जलें आकाश।जहाँ धूणी गायत्री माई का भया प्रकाश।जीव जंतु कीड़ा मकोड़ा मोक्ष मुक्ति फल पाई।पांच कोस आगे से।पांच कोस पीछे से।पांच कोस दांयीनी भुजा से।पांच कोस बायींनी भुजा से।आठ कोस की माया चारों जुग की काया अस्सी कोस की ऋद्धि सिद्धि ला धूणी गायत्री माई।नहीं लावें तो गुरु गोरक्ष नाथ जी करोड़ करोड़ दुहाई।वेद पुराण का पाठ करन्ते ब्रम्हा जी धूप दीप ले आई गौरां पार्वती माई।विष्णु जी लाये समिधा लकड़ी।कुबेर भण्डारी लाये ऋद्धि सिद्धि।सब सिद्ध सन्तो को बोल बुलाई।ठौर ठौर आसन बिछायें।आसन बैठे बारह पँथ के बारह पीर।अलख जाप निर्भय जोगी।नवनाथ चौरासी सिद्धों के बीच ज्वाला आन समाई।अलख पुरुष ने धूणी चेताई।हुआ प्रकाश।चेतन भई धूणी।गुग्गल घृत धूणी पाणी अन्नपूर्णा देवी भोग लगाई।आओ सिद्धों चेतो सिद्धों पलटी विभुति धूणी चेताई।अयोनि शिव शंकर तेरी दुहाई।कौंन आसन जपूं जाप।कौंन आसन धरूँ ध्यान।कौंन आसन रहूँ शून्य में कौंन आसन कथूं ज्ञान।पूर्व आसन जपूं जाप उत्तर आसन धरूँ ध्यान।दक्षिण आसन रहूँ शुन्य में पश्चिम आसन कथूं ज्ञान।इतना धूणी गायत्री मंत्र जाप सम्पूर्ण भया।कैलाश पर्वत मानसरोवर झील पर सिद्धासन बैठ महादेव जी ने अवधूत दत्तात्रेय नाथ जी को कान में सुनाया।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

ञिकाल संजीवनी मंञ

ञिकाल संजीवनी मंञ

त्रिकाल संजीवन गायत्री मंत्र :-इस गायत्री मंत्र का प्रभाव बहुत प्रभावी और अत्यंत लाभ प्रद हैं तथा यह सौम्य मन्त्र हैं इस मन्त्र का जप कोई भी कर सकता हैं नर नारी दोनों भी कर सकते है

सतनमो आदेश।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी ओउम सोहंम अमर योगी अमर काया।अमर लोक से उतरी माया।ब्रम्हा विष्णु महेश रचाया।हाड़ चाम की मढ़ी पवन अलील की काया।गलें नहीं हाड़ सड़े नहीं चाम स्थिर रहें योगी की काया।त्रिकाल संजीवन गायत्री मंत्र देवाधिदेव महादेव जी ने गौरां पार्वती को कान में सुनाया।कहे गुरु गोरक्ष नाथ जी सुनो नवनाथ चौरासी सिद्धों अमर किन्हीं गौरां पार्वती माई की काया।मरें नहीं गौरां पार्वती माई।आवें न जावें।कहाँ से उत्पन्नी गौरां पार्वती माई।कहाँ से उत्पन्नी सुरें।कण्ठ से उत्पन्नी गौरां पार्वती माई।शीश से उत्पन्नी सुरें।रूपवंती एक जन्म।सत्यवन्ती दो जन्म।शीलवंती तीन जन्म।चण्डी चार जन्म।पृथ्वी पांच जन्म।क्षमा छठे जन्म।सावित्री सात जन्म।नवदुर्गा नवें जन्म।गर्भवन्ती दसवें जन्म।मुले असल कहन्ती।मूलवन्ती देवी।माई पात्र कृष्ण वर्णी।ऋद्धि सिद्धि के भंडारे भरन्ती।काल कण्टक को भस्म करन्ती।देव दानवों को प्रताड़ित करन्ती।गो हत्या,जीव हत्या, स्त्री हत्या, ब्रम्ह हत्या, अन्न हत्या दोष हरन्ती।योगी के कुल से इकोत्तर सो पुरुषां ले अमरापुर तरन्ती।पिण्ड प्राण की रक्षा करन्ती।राख राख माता त्रिकाल संजीवन गायत्री राख।अघोर पिण्ड पड़न्ता राख।ब्रम्हा विष्णु महेश भरें सांख।तेरा दिया शिवपुरी में वास।इस प्राणी को अन्त काल में कभी न भक्षय काल अकाल।चार मुख द्वारा सुमिरण करें।चार प्रहर वेद न झरें।अम्बर मुख झरें।धरती मुख फलें।पान फूल गऊ मुख द्वारा चरें।मूल द्वारे गोबरी करें।भग द्वारें गंगा यमुना सरस्वती का नीर झरें।महादेव जी भर लाये कर्म कमण्डल विष्णु जी भर लाये जल।गौरां पार्वती माई चौका लगायें।गुरु गोरक्षनाथ जी घन चक्र पुरें।ब्रम्हा जी चार वेद का पाठ करें।सात जन्मों का पाप कटें।लख चौरासी जिया जून से फेरा टलें।अवधूत दत्तात्रेय नाथ जी त्रिकाल संजीवन गायत्री मंत्र का जाप जपन्ते।गौरी नन्द गणेश ऋद्धि सिद्धि का भण्डार भरें।काली पुत्र काल भैरव काल अकाल मृत्यु से निर्भय करें।अंजनी सुत हनुमान संकट हरे।प्रातः काल जपे अष्ट सिद्धि नवनिधि पावें।मध्यांहः काल जपे मोक्ष मुक्ति फल पावें।संध्याह्न काल जपे शिवपुरी में जावें।इतना त्रिकाल संजीवन गायत्री मंत्र जाप सम्पूर्ण भया।गंगा गोदावरी त्र्यम्बकं क्षेत्र कोलागढ़ पर्वत की अनुपान शिला पर सिद्धासन बैठ श्री सदाशिवः शम्भुजति गुरु गोरक्ष नाथ जी ने नवनाथ चौरासी सिद्ध बारह पँथ अनन्त कोटी सिद्धों को पढ़ कथ कर सुनाया।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

महाकाली मंञ

महाकाली मंञ

महाकाली मन्त्र

सतनमो आदेश।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी बंगाल खण्ड कामरू देश में बंगाल की खाड़ी।जहाँ बैठी महाकाली।काली कंकाली महाकाली।जल की जोगिनी पाताल की नागिन।आगे चलें काल भैरव वीर।पीछें चलें हनुमन्त वीर।दांये चलें गणेश वीर।बायें चलें बावन वीर।काली पंचमुखी गुड़ गुड़ आवें।दप दप बाँधे।पाश पाश छुटे। वीर लुटे।लोटन वीर की दुहाई।वीर की जटा हिलें।माई की चाल रुकें।रक्त वीर की आन लगाई।माई की ज्योति जगाई।प्रकट हो शम्भु शिवानी काली माई।इतनी वार कहाँ लगाई।भोग मांगे माई।लुहानी धार लगाई।जुगत जाई।ॐ क्रीम काली प्रकट प्रकट कुहद देहीवासिनी ॐ फट स्वाहा।इतना काली मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया।शून्य की गादी बैठ गुरु गोरक्ष नाथ जी ने आपो आप सुनाया।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

आसो मेहतरानी मन्त्र

आसो मेहतरानी मन्त्र

सतनमो आदेश।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी बंगाल खण्ड कामरू देश की आसो मेंहतरानी माई हाथ मोरपंख का झाड़ु गले मुण्डमाला काली जटा।सिंह सवार पाँव पायल नृत्य करें मढ़ी मसाण चौपटा।कामरू देश से आसो मेंहतरानी आई।लाल घाटी के लाल नदी के लाल जलाल को साथ मे लाई।मरघट के मढ़ी मसाण को लाई।घाट के घटिया को लाई।कलुआ वीर और चौसठ योगिनी को लाई।ऐरानी मेरानी को डूडी सुखी ।मेरानी को चार कोट चौकड़ी को लाई।आकाश तोड़ पाताल फोड़।धुलम धूल उड़ाती आई।जायेगी खन खनाती।आयेगी खिलखिलाती।कोट कोट पे खेंले।डाल डाल पर झूलें।ताल ताल को सुखाये।भूत भविष्य को बताये।तीर पर तीर चलायें के पूर्व जन्म को न बतायें तो आसो मेंहतरानी न कहाये।बन्द खुली आँखन से बताये।सही गाँव संवत जाति धर्म गेल को नेत्रंन से न बतायें।तो महादेव जी जटा उखाड़ खून में स्नान करें।वाचा चुकें तो कामधेनु गाय की बोटी काट दाँत नीचे दबायें।शब्द साँचा पिण्ड काँचा।फुरों मन्त्र गुरु गोरक्षनाथ वाचा।सत्यनाम आदेश गुरु का।

धूप करने का मन्त्र

धूप करने का मन्त्र

सतनमो आदेश।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी धूप कीजै धूपिया कीजै वासना कीजै।जहाँ वास वहाँ देव।जहां देव वहाँ गुरुदेव।जहाँ गुरुदेव वहाँ फूल पूजा।अलख निरंजन एक और नही दूजा।गौघृत गुग्गल वास।तृप्त हो नवनाथों के नाथ श्री सदाशिव शम्भुजती गुरू गोरक्ष नाथ और तैतीस कोटि देवी देवता भेंक भगवान।प्रथम धूप सतगुरु को कीजै मोक्ष मुक्ति का फल लीजै।दूसरी धूप माता पिता की कीजै।दया धर्म की शिक्षा लीजै।तीसरी धूप कुलदेवी कुलदेव कुलगुरु की कीजै।जगत में नर नारी जीवों की सेवा कर परमार्थ कीजै।चौथी धूप तैतीस कोटि देवी देवताओं की कीजै।काल कण्टक ने निर्भय रहीजै।पाँचवी धूप पंच तत्वों की कीजै।प्रकृति का भेद जानिजै।कहे भृतहरि सुनो गोपीचन्द ये पंच धूप कीजै।काया खोज अमिरस पीजै।इतना धूप दान मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया।उज्जयिनी नगरी महाकालेश्वर महादेव जी के सन्मुख बैठ राजा भृतहरि नाथजी ने राजा गोपीचन्द नाथजी को पढ़ कथ कर सुनाया।श्रीनाथजी गुरुजी की आदेश।आदेश।आदेश

भोग लगाने का मन्त्र
सतनमो आदेश।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी लगे भोग कटें चौरासी रोग।अन्न भूतों दानी अन्न भूतों पानी।अन्न खाया अलील पिया।उसी की पूजा उसी का पुण्य।योगी अवधूत और ना पुण्य।कहे महादेव जी सुनो गौरां पार्वती अन्न दाता सदा सुखी।वस्त्र दाता कमलापति सदा सुखी।दे भोग सन्तोषी खायें।उसी की वासना तीन लोक चौदह भुवन सप्त पाताल में जायें।इतना भोग दान मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया।कैलाश पर्वत की शिला पर गादी बैठ महादेव जी ने गौरां पार्वती माई को कान में सुनाया।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

बत्ती बनाने का मन्त्र

सतनमो आदेश।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजीओउम धरती सोहंम आकाश।महाअंग धरती महाशुन्य आकाश।उन सिद्धा लिया निवास।पंच महेश्वर घटी तलाई।गुरु गोरक्ष नाथजी के वचन से भृतहरि गोपीचन्द ने बत्ती बनाई।इतना बत्ती बनाने का मन्त्र सम्पूर्ण भया।शून्य की गादी बैठ अवधूत दत्तात्रेय नाथजी ने आपो आप सुनाया।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

ज्योति पात्र में सार(घी) डालने का मन्त्र

सतनमो आदेश।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी सार सार महासार।सार परसो ज्योति चेते भुजा पसार।रक्षा करें गुरु गोरक्ष नाथ।इतना ज्योति में सार डालने का मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया।शून्य की गादी बैठ महादेवजी ने आपो आप सुनाया।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

ज्योति जलाने का मन्त्र

सतनमो आदेश।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी ओउम ज्योति सोहंम ज्योति।शिव ज्योति शक्ति ज्योति।चारों ज्योति मिल इक्कठी भई।हस्तक ले मस्तक चढ़े आदि ज्योति कहाँ से आई।गुरु गोरक्ष नाथ जी के हुकम से आई।किसने चेताई।गोपीचन्द भृतहरि ने चेताई।किस किस ने जगाई।नवनाथ चौरासी सिद्धो ने जगाई।पीर पैग़म्बरों ने जगाई।धवल कंवल ने जगाई।चेतन हुई अखण्ड ज्योति अमर भई काया।महादेवजी और गौरां पार्वती माई ने ध्यान लगाया।ले हाथ में अंकुश गौरी नन्द गणेश आया।ले हाथ में खप्पर त्रिशुल काली पुत्र काल भैरव आया।ले हाथ में गदा अंजनी सुत हनुमान जी आया।चारों ने मिलकर अखण्ड ज्योति का दर्शन पाया।दर्शन हुई ज्योति वज्जर की भई हाड़ चाम की काया।इतना अखण्ड ज्योति मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया।शुन्य की गादी बैठ अवधूत दत्तात्रेय नाथजी ने आपो आप सुनाया।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

कलश स्थापना करनें का मन्त्र

कलश स्थापना करनें का मन्त्र

सतनमो आदेश।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी गंगाजल सर्वोत्तम भारी।अलख देव की माया सारी।अलख स्वरूपी कलश मंगाया।अमृत जल उसमें भरवाया।कलश पुर कर ध्यान लगाया।अलख पुरुष खलक में पाया।प्रथम कलश गुरु गोरक्ष नाथ जी ने थरपाया।गोपीचन्द भृतहरि अलख गुण गाया।इतना कलश स्थापना मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया।शून्य की गादी बैठ अवधूत दत्तात्रेय नाथजी ने आपो आप सुनाया।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

श्रीफल रखने का मन्त्र

सतनमो आदेश।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी सिंहल द्वीप में रहाया।अलख पुरुष माया रचाया।नवखण्ड तँह वासा लीन्हा।तहाँ जाय हम गम जब कीन्हा।जल खण्डी को मारया तभी।देही रत्न को काढ़या जभी।जतन कर महादेवजी वृक्ष लगाया।बंधा हुआ श्रीफल मंगाया।ले श्रीफल अलख पुरुष मन भाया।गोपीचन्द भृतहरि ने गुरु गोरक्ष नाथजी के चरणों में भेंट चढ़ाया।इतना श्रीफल मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया।शून्य की गादी बैठ अवधूत दत्तात्रेय नाथजी ने आपो आप सुनाया।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

ज्वाहरा बोने का मन्त्र
सतनमो आदेश।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी कौन नगरी कौन प्रधान कौन पुरुष ने थापे थान।शिवपुरी नगरी शिव शक्ति प्रधान।सतगुरु ने थापे थान।भृतहरि बोये ज्वाहरा गोपीचन्द करें जाप।रक्षा करें गुरु गोरक्ष नाथ।इतना ज्वाहरा बोने का मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया।शून्य की गादी बैठ अवधूत दत्तात्रेय नाथजी ने आपो आप सुनाया श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश

दूर्वा चढ़ाने का मन्त्र
सतनमो आदेश।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी उत्तर दिशा से आनन्दी योगिन आई।दोनों कर से दूर्वा ले आई।दूर्वा चढ़े।पाप कटे।अलख पुरुष तेरी दुहाई।इतना दूर्वा चढ़ाने का मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया।शून्य की गादी बैठ गुरु गोरक्ष नाथजी ने आपो आप सुनाया।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

भगवा बाना धारण करने का मन्त्र

भगवा बाना धारण करने का मन्त्र

सतनमो आदेश।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी अरबद नरबद धुंधुकारा।शिव शक्ति किया विचारा।आओ शक्ति ऐसा कीजै।नख से चीरा उदर के नीचे कीजै।तब शक्ति ने नख से चीर के भग बनाया।शिव ने सूरत निरत योग से लिंग बनाया।भग से निकली रक्त की बुन्दे।रक्त बून्द से गेरू उपाया।गेरू मेरू गिरी पर्वत पर ठहराया।वो गेरू गौरी नन्द गणेश लाया।एक छटाँग गेरू नो छटाँग पानी।संग में अष्ट सिद्धि नवनिधि समाणी।उसमें भगवा चादर रँगाणी।गुरु गोरक्ष नाथ जी ने भगवा भेंष बनाया।अलख निरंजन शब्द सुनाया।गोरक्ष दत्त नानक कबीरा चालिया देशावर कर भगवा भेंष।लीन्हा भेंक भगवान के नीचे उपदेश।नवनाथ चौरासी सिद्धों ने भगवा बाना धारण किया।तब पीछें सर्व सन्यासीयों ने लिया।भगवा बाना आपो आप बना कर्म की रेख।कहे राजा भृतहरि सुनो राजा गोपीचन्द आपही कर्ता आपही अलेख।इतना भगवा बाना मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया।अर्बुदांचल पर्वत की शिला पर राजा भृतहरि नाथजी ने राजा गोपीचन्द नाथजी को पढ़ कथ कर सुनाया।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

लँगोट धारण करने का मन्त्र

सतनमो आदेश।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी सत्य की लँगोट सन्तोष का धागा।सुर नर मुनि ध्यान में लागा।सहज सुख जागा।काल अकाल मौत का भंय भागा।नागा बाँधे नागफणी सन्त बाँधे लँगोट।नहीं आवें क़भी काल काम यम की चोट।बाल गोपाल बाँधे कोपीन नवनाथ चौरासी सिद्धों की ओट।कहे गुरु गोरक्ष नाथजी सुनो गोपीचन्द भृतहरि।गुरु मन्त्र पढ़ बाँधे लँगोट।लिंग में वीर्य स्थिर रहें कभी नहीं पड़े पाप की पोट।इतना लँगोट मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया।कैलाश गिरी की शिला पर बैठ श्री सदाशिव शम्भुजती गुरु गोरक्ष नाथजी ने राजा गोपीचन्द नाथजी राजा भृतहरि नाथजी को पढ़ कथ कर समझाया।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

सूर्य नारायण नमस्कार मन्त्र

सतनमो आदेश।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी उगन्त सूर्य नारायण बाजन्त तूर।बरसन्त नूरकाल कण्टक जाहि दूर।हाथ खड़्ग गले पुहुँप की माला।नवखण्ड पृथ्वी में भया उजियाला।त्रिकाल देव सूर्य नारायण स्वरूपी।प्रभाते ब्रम्हा रूपी।मध्याने विष्णु रूपी।सन्ध्याने शिव शंकर रूपी।एकादश जाप जपन्ते।अष्ट सिद्धि नवनिधि फलन्ते।ओउमकार जय जय कार।श्री सूर्य नारायण को नमस्कार।इतना सूर्य नारायण नमस्कार मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया।शून्य की गादी बैठ गुरु गोरक्ष नाथजी ने आपो आप सुनाया।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

आचमन करने का मन्त्र

सतनमो आदेश।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी वरुण देव का जल में वासा।त्रिवेणी में करें निवासा।करें आचमन सुधरें काया।गुरु गोरक्ष नाथजी ने गोपीचन्द भृतहरि को यूं फ़रमाया।अलील पुरुष को बंम बंम।इतना आचमन करने का मन्त्र सम्पूर्ण भया।शून्य की गादी बैठ अवधूत दत्तात्रेय नाथजी ने आपो आप सुनाया।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

भोजन करने का मन्त्र

सतनमो आदेश।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी अन्न जल पावन प्रसादी किन्ही।अलख पुरुष को अर्पण किन्हीं।पाओ भोजन प्रेम प्रीता।काल जाल भूख को जीता।भोजन करें गुरु गोरक्ष नाथजी अवधूता।भोजन मन्त्र पढ़ कर भोजन करें।खाया पिया घट में जरें अमर रहे पिण्ड।सतगुरु बैठे इक्कीसवें ब्रम्हाण्ड।इतना भोजन मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया।शून्य की गादी अवधूत दत्तात्रेय नाथजी ने आपो आप सुनाया।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

धरती माई से भूमि दान माँगने का मन्त्र

धरती माई से भूमि दान माँगने का मन्त्र

सतनमो आदेश।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी उत्तम धरती माई मध्यम कांया।जागो चण्डी देवी योगेश्वर कर्म को आया।मैं बालक तूं मेरी माई।धरती माई आपका थोड़ा अंग दान देकर करो सहाई।साड़े तीन हाथ भूमि दे दो मेरी माई।सिद्ध साधक को अपनी भूमि में ले लो समाई।इतना धरती माई से भूमि दान माँगने का मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया।शून्य की गादी बैठ अवधूत दत्तात्रेय नाथजी ने आपो आप सुनाया।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

धरती पर चौका लगाने का मन्त्र

सतनमो आदेश।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी गौबर माटी गंगा का नीर।नवखण्ड धरती के चौका लगावें हनुमन्त वीर।गौरां पार्वती माई बने कुंकुम चन्दन चौक पुराया।उत्तम हुई नवखण्ड धरती माई महादेव जी ने ध्यान लगाया।कीड़ी मकोड़ी जीव जन्तु निकट नहीं आवें।सारे क्लेश कण्टक दूर भग जावें।इतना धरती पर चौका लगाने का मन्त्र सम्पूर्ण भया।शून्य की गादी बैठ अवधूत दत्तात्रेय नाथजी ने आपो आप सुनाया।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

आसन पर बैठने का मन्त्र
सतनमो आदेश।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी सत की धरती सत की माया।सत का आसन सत की काया।सत नाम अमर की छायां।वहाँ पर देहीं ने विश्राम पाया।आसन बैठ शून्य समाधि में बैठकर स्वर्ग लोक को सिधाया।जन्म मरण में कभी नहीं आया।आसन लगाया गुरु गोरक्ष नाथजी आप।असँख्य जुगों का कट गया पाप।आसन पर बैठने का मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया।शून्य की गादी बैठ अवधूत दत्तात्रेय नाथजी ने आपो आप सुनाया।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

स्नान करने का मन्त्र

सतनमो आदेश।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी सत ओर धर्म का अलील वीर।संग मिलाया गंगा नीर।निकलंक नीर निर्वाण।बैकुण्ठ लोक में वासा दीजे।शिव पूजू शक्ति पुजू और पूजू भेंक भगवान।पंचदेव आज्ञा करें तो धर्म जल से करूँ स्नान।स्नान कर जोगी ध्यान लगावें।गर्भवास में फिर नहीं आवें।पड़े नहीं पिण्ड काल कण्टक आवें नही पास।उसका सीधा शिवपुरी में वास।स्नान मन्त्र पढ़ करें स्नान।दया धर्म से रहे तो काया हो जावें गुरू गोरक्ष नाथजी समान।इतना स्नान मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया।शून्य की गादी बैठ अवधूत दत्तात्रेय नाथजी ने आपो आप सुनाया।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

वस्त्र धारण करने का मन्त्र

सतनमो आदेश।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी गेरू पानी उजला अंचला निर्मल भगवा भेंष। सप्त शब्द शोध कर सतगुरु दिया उपदेश।सत का मार्ग स्वर्ग का और कुछ नहीं शेष।पहन भगवा बाना और श्वेतांबर पीतांबर दिगम्बर सिद्ध साधक चालिया अलख पुरुष के देश।इतना वस्त्र पहनने का मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया।शुन्य की गादी बैठ अवधूत दत्तात्रेय नाथजी ने आपो आप सुनाया।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

महावीर हनुमान मन्त्र

महावीर हनुमान मन्त्र ( इसको नाथ पँथ में महावीरास्त्र भी कहते हैं )

सतनमो आदेश।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी ओउम सोहंम धरें आकाश।आकाश में पवन।पवन में तेज।तेज में तोय।तोय में तवा।तवा में बाला परमहंस रखवाला।बाला परमहंस में अलख निरंजन।अलख निरंजन की ये काया।तो शिव शक्ति दोनों ने नाद बिन्द से रचाया।ब्रम्हा विष्णु महेश मिल के उसमें प्राण डालिया।चाम पड़े तो सती सीता माई लाजै।हाड़ गलें तो अंजनी माता लाजै।माँस सड़े तो पवन लाजै।प्राण ले जाये तो सतगुरु लाजै।पड़े नहीं पिण्ड,छूटें नहीं काया।राजा रामचन्द्र जी ने महावीरास्त्र चलाया।हाँक मार अंजनी पुत्र हनुमान जी आया।सात समुन्द्र,सात समुन्द्र बीच ऋषिम्युक पर्वत।ऋषिम्युक पर्वत पर स्फटिक शिला।जिस पर अंजनी पुत्र हनुमान जी बैठा।कानों कुण्डल काँधे मुंज जनेऊँ सिर जटा।पांव खड़ाऊँ क़मर वज्जर लँगोट हाथ में लोहे की गदा।ग्रह कील।भूत कील।प्रेत कील।वैताल कील।कंकाल कील।आकाश कील।सर्वदिशा कील।खेचरा कील।भुचरा कील।जलचरा कील।थलचरा कील।नभचरा कील।डेरू बजती ढांक कील।आकाश की कड़कती बिजली कील।आती मुठ कील।जलती चिता कील।मुर्दा कील।मरघट कील।मढ़ी कील।मसाण कील।भूमि का भोमिया कील।गढ़े धन का रखवाला कील।बादिगर का बाद कील।दुश्मन का कण्ठ कील।पूर्व कील।पश्चिम कील।उत्तर कील।दक्षिण कील।पवन पुत्र बीरबंक नाथ बजरंगबली रामदूत हनुमान जाग।तीनलोक चौदह भुवन सप्त पाताल में किलकारी मार।तूं हुंकारे।तैतीस कोटि देवी देवता काज सँवारे।ओढ़ सिन्दूर सती सीता माई का।तूं प्रहरी अयोध्यापुरी का।महावीर हनुमान बलवन्ता।राजा रामचन्द्र जी के दूत हल हलन्ता।आओ चढ़ चढन्ता।आओ गढ़ किला तोड़न्ता।आओ लंका जालन्ता बालन्ता भस्म करन्ता।आओ ले लांगुर लँगूर ते लिपिटाये सुमिरिते पटका ओ चन्दी चन्द्रावली भवानी मिल गावें मंगलाचार।जीते राजा रामचन्द्र कुंवर जति लक्ष्मण।हनुमान जी तुम आओ।आओ जी रामदूत तुम आओ।मस्तक सिन्दूर चढ़ाते आओ।दांत किट किटाते आओ।सोलह सौ योजन समुन्द्र को लाँघते आओ।मैनाक पर्वत पर विश्राम करते आओ।सिंहिका राक्षसी की खोपड़ी फोड़ते आओ।सुरसा माता के मुँह में घुस कर वापिस आओ।लंकिनी देवी के मुँह पर मुष्टिका मारते आओ।अशोक वाटिका को उजाड़ते आओ।अक्षय कुमार को उठाकर पटकते आओ।रानी मंदोदरी का सिंहासन हिलाते डुलाते आओ।द्रोणाचल पर्वत को उखाड़ते आओ।लंकापति रावण को मूर्छित करतें आओ।आओ आओ पवन कुमार हनुमान।बांये चलें सुग्रीव वीर।आगे काल भैरव किलकिलाये।दांये चले अंगद वीर।पीछे चलें जामवन्त वीर।ऊपर अंजनी पुत्र हनुमान जी गाजै।देव दानव राक्षस को फाड़े।डाकिनी शाकिनी को मार संहारें।हे रुद्र अवतार हनुमान जी माता अंजनी के गर्भ से तुम्हारा जन्म हुआ मारुति तुम्हारा प्रथम नाम।समुद्र कूद लंकापुरी में दांया पाँव ठहराया।तब अशोक वाटिका में सतवंती सीता माई का दर्शन पाया।ऐसा जति मर्द योद्धा माता अंजनी ने सतयुग में जाया।अंजनी पुत्र हनुमान तुम्हारी हाँक से चौरासी चेटक तुम्हारें आगे नृत्य करें।भूतनी प्रेतनी पिशाचिनी तुम्हारी गदा देख के भागे।गढ़ गजनी का मुहम्मद वीर तुम्हारी ग़ुलामी करें।बैठ आसन सुमरुं तोहिं।दोष दृष्टि बाँध दे मोहिं।मेरा बैरी-दुश्मन तेरा भक।भेजा फोड़ कलेजा चख।उलट मार।पलट मार।पटक मार।पछाड़ मार।धर मार।मार मार बेगि मार।नहीं मारें तो माता अंजनी का पीया दूध हराम करें।वाचा छोड़ कुवाचा करें।तो कपूरी धोबिन की नाँद लोना चमारि के कुण्डे में पड़े।इतना महावीर हनुमान मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया।कैलाश गिरी की शिला पर सिद्धांसन बैठ श्री सदाशिव शम्भुजती गुरु गोरक्ष नाथजी ने राजा गोपीचन्द राजा भृतहरि को कान में सुनाया।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

बाल भैरव मन्त्र

बाल भैरव मन्त्र

सतनमो आदेश।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी मैं तुममें सुमरुं बाल भैरव।बाल भैरव तुं खेंल।बाल भैरब बावन वीर।तुझपे छोड़ु वचनों का तीर।बाल भैरव भूरी जटा।कानों कुण्डल हाथ खप्पर गदा।बाल भैरव खेंले दसों दिशा।लौंग कपूर का कोट पँचमेंवा पान सुपारी का बड़ा।जहाँ सुमरुं वहाँ बाल भैरव हाजिर हजूर खड़ा।फिर हाजिर नहीं आवें।तो माता गौरां पार्वती माई का पीया दूध हराम कर जावें।पिता महादेवजी की जटा तोड़ खून में स्नान करें।सूर्य चन्द्रमा हमारी तुम्हारी सांख भरें।राखो राखों लाज हमारी।मैं जोगी का बाल।लीले का असवार।भेंक भगवान का ग्वाल।नवनाथ चौरासी सिद्धों को आदेश।शिव स्वरूप बाल भैरव को आदेश।ॐ शिव स्वरूपाय बाल भैरवाय विदमहे दण्डनायकाय धिमहि तन्नो रुद्रराय प्रचोदयात।इतना बाल भैरव मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया।शून्य की गादी बैठ श्री सदाशिव शम्भुजती गुरु गोरक्ष नाथ जी ने आपो आप सुनाया।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश

काशी कोतवाल त्रिकाल भैरव मन्त्र

काशी कोतवाल त्रिकाल भैरव मन्त्र

सतनमो आदेश।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी काल भैरव गौरां भैरव बाल भैरव घांस भैरव त्रिकाल भैरव कंकाल भैरव पाताल भैरव मसाण भैरव।ऐते अष्ट भैरव बोलिये।त्रिकाल भैरव चौकी रम रंगा।मढ़ी मसाण फिरें त्रिकाल भैरव चंगा।भय करें निर्भय फिरें।नवखण्ड धरती के चौक पुरें।उत्तर दिशा से योगिन आवें काली चण्डी खप्पर भरें हाथ खड़्ग भर पूरें।दसों दिशा का चौक बाँधु केतली काली रात बाँधू जले बले।काल जंजाल बाँधू छल चलें बल चलें।काली दन्त का खड़्ग चलें त्रिकाल भैरव बलि के आगे धरें।त्रिकाल भैरव नाथ की माया चलें।आदि युगादि त्रिकाल भैरव कंदली काल देश में आवागमन।त्रिकाल भैरव नाथ काशी वार्ता बनारस थम्भ क्षेत्रपाल।सदा रहो हम पर कृपाल।लो त्रिकाल भैरव ज्योति पाट।पान सुपारी लौंग बतासा का कोट मद की धार चौमुखा दीपक गुग्गल का बड़ा।जहाँ सुमरुं वहाँ त्रिकाल भैरव हाजिर हजूर खड़ा।कहे गुरु गोरक्ष नाथ जी सुनो नवनाथ चौरासी सिद्धो त्रिकाल भैरव की पूजा कौन मेंटे।राजा मेंटे राज पाट से जाये।प्रजा मेंटे दूध पूत से जाये।जोगी मेंटे ध्यान पाठ से जाये।बालक मेंटे ज्ञान विद्या बल से जाये।इतना काशी कोतवाल त्रिकाल भैरव मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया।

काल भैरव मन्त्र2

काल भैरव मन्त्र

सतनमो आदेश।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी काल भैरव काला केश।कानों कुण्डल भगवा भेंष।हाथ में खप्पर चिमटा मुण्डमाला धारी।पहली हाँक लंकापुरी में मारी।रावण को मार रामचन्द्र ने सीता माई उद्धारी।मार मार काली के पूत।कीलूँ चहुँ दिशा के भूत।कीलूँ चहुँ दिशा के मढ़ी मसान।कीलूँ जिन्द पठान।और कीलूँ तो बाजे तान।श्रीफल का कोट मद की धार गुग्गल लोहबान का बड़ा।जहाँ सुमरुं वहाँ काल भैरव हाजिर हजूर खड़ा।हथेली तो हनुमान जी बसें काल भैरव बसें लिलाट।बिन्दी तेल सिन्दूर की मोहूँ ब्रम्हा जी का ब्रम्हाण्ड।चोर चुड़ैल को मोहूँ।डंकिनी जोगनी को मोहूँ।तख़्ते बैठा राजा को मोहूँ।महलों बैठी रानी को मोहूँ।मोहूँ सब संसार।हाजिर हजूर होके काल भैरव।हमारा इतना काम नहीं करें।तो माता गौरां पार्वती का पिया दूध हराम करें।पिता महादेव जी की जटा उखाड़ खून में स्नान करें।इतना काल भैरव मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया।शुन्य की गादी बैठ राजा भृतहरि नाथ जी ने आपो आप सुनाया।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

काल भैरव मन्त्र

काल भैरव मन्त्र

सतनमो आदेश।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी काशी कोतवाल काल भैरव काली रात।तोय सुमरुं आधी रात।कानों मुन्दरा हाथ खड़्ग।काला पहिने चोला काली बाँधे ढाल।काली ओढ़े कांचली नृत्य करें मढ़ी मसान।काल भैरव मार।काल भैरव त्यार।काल भैरव डाकिनी की छाती तोड़।काल भैरव का प्रेतराज का सिर फोड़।काल भैरव जिन्द की भुजा मरोड़।काल भैरव चुड़ैल की कमर निचोड़।काल भैरव मार मार भस्मन्त करें।गुरु गोरक्ष नाथ की दुहाई फिरती रहे।गौरी नन्द गणेश,अंजनी सुत हनुमान,काली पुत्र काल पिण्ड प्राण की आठों प्रहर रक्षा करें।जो इस हँसा ऊपर अस्त्र शस्त्र चलायें।पलट काल भैरव उसी को खायें।काल भैरव जल बाँधे थल बाँधे।आर्या आसमान बाँधे।जादू टोना बाँधे।मढ़ी मसाण बाँधे।कब्र कब्रिस्तान बाँधे।दुष्ट मुष्ट को बाँधे।बाँध बाँध।जल्दी बाँध।रोम रोम में बाँध।बाल बाल में बाँध।चाम चाम में बाँध।हाड़ हाड़ में बाँध।नख सिर में बाँध।कपाल चोटी में बाँध।घट पिण्ड में बाँध।नवनाड़ी बहत्तर कोठा में बाँध।बाँध बाँध कर मढ़ी मसाण में ले जावें।मढ़ी मसाण में ले जाकर ठिकरें के खप्पर में जलावें।बाँध कर नहीं जलावें।तो माता कालिका देवी का पीया दूध हराम कर जावें।चल चल काशी कोतवाल काल भैरव पूजा लौंग बतासा श्रीफल की देउँ मद की धार।भरी सभा में धूं आने में कहाँ लगाई इतनी बार।खप्पर में खाये मसाण में लौटे।ऐसे काल भैरव की पूजा कौन मेटें।राजा मेंटे राज पाट से जाये।प्रजा मेंटे दूध पूत से जाये।जोगी मेंटे ध्यान पाठ से जाये।इतना काशी कोतवाल काल भैरव मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया।शून्य की गादी बैठ राजा भृतहरि नाथ जी ने आपो आप सुनाया।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

किसी भी प्रकार की बाधा को हटाने का अचूक मन्त्र

किसी भी प्रकार की बाधा को हटाने का अचूक मन्त्र

सतनमो आदेश।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी हनुमन्त वीर और नाहर सिंह वीर।नारी जाया नाहर सिंह अंजनी जाया हनुमन्त।वाने जारी बीज भवन्ता।वा तोड़ी गढ़ लंका।तेरी पाखरी कौन भरे।नाहर सिंह बलवन्त वन में फिरें।अकेलड़ा भँवर खिलाये केस।बारह प्याला मद का पीये।बारह बकरा खाये।न धाये तो नाहर सिंह वीर तूं दौड़ मढ़ी मसाण जाये।सात पांच ने मार खायें।सात पांच ने चीर फाड़ खायें।चल चल नाहर सिंह वीर चल।हाड़ हाड़ में से।चाम चाम में से।नख नख में से।बाल बाल में से।घट पिण्ड में से।नवनाड़ी बहत्तर कोठा में से खेंच खेंच कर।पकड़ पकड़ कर।हाजिर कर।नही हाजिर करें।तो माता अंजनी का पिया दूध हराम करें।शब्द साँचा पिण्ड काँचा।फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा।सत्यनाम आदेश गुरु का।

श्री गोरक्ष फ़टकार मंत्र

श्री गोरक्ष फ़टकार मंत्र सतनमो आदेश।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी उत्तर दिशा में श्री सदाशिव शम्भुजती गुरु गोरक्ष नाथ खड़ा।कानों कुण्डल काँधे झोली माथे चन्द्रमा सिर जटा।पगां खड़ाऊ गले रुद्राक्ष माला भगवा भेष हाथ खप्पर त्रिशूल चिमटा।गुरु गोरक्ष नाथ माया मछिन्द्रनाथ का चेला।जति सती की षटक्रिया देखें।तो सिद्धों के संग रहें।नहीं तो मढ़ी मसाण में फिरें अकेला। गुरु गोरक्ष नाथ हुंकारता आया।गाजता आया।घोरता आया।सिर की जटा बखेरता आया।और की चौकी उखाड़ता आया।अपनी चौकी बिठाता आया।और का किवाड़ तोड़ता आया।अपना किवाड़ भेड़ता आया।गौरी नन्द गणेश को उठाकर लाया।काली पुत्र काल भैरव को जगा कर लाया।अंजनी सुत हनुमान को पकड़ कर लाया।हज़रत मुहम्मद साहब को बाँध कर लाया। गुरु गोरक्षनाथ जी तुम्हारा जोग इक्कीस ब्रम्हाण्ड में बड़ा अपार।देव दानव तुम्हारें जोग से नवखण्ड धरती छोड़ भाग जाये पाताल।नगर -खेड़ा बस्ती गाँव के देवी- देवता थर्र थर्राये।सुलेमान पीर ,कमाल खां पठान औऱ मुल्ला मौलवी काजी तुर्क तो मक्का मदीना छोड़ पाताल में घुस जाये।ब्रम्ह हत्या और मुआ मुर्दा जलती चिता छोड़ धरती में धँस जाये।भूत प्रेत जिन्द औऱ राक्षस पिशाच घर बार छोड़ मढ़ी मसाण चौपटा में जाकर सो जाये।डाकिनी शाकिनी औऱ भूतनी प्रेतनी घट पिण्ड को त्याग बारह कोस दूर भाग जाये।बाँधी बाँधी।किस किस को बाँधी।देव दानव को बाँधी।उड़न्त गढ़न्त योगिनी महामारी चुड़ैल को बाँधी।हाट को बाँधी।घाट को बाँधी।मरघट को बाँधी।बाँधी बाँधी रे गढ़ गिरिनार के गुरु गोरक्ष नाथ पीर।संग चलें तेरें नवनाथ चौरासी सिद्ध औऱ बारह पंथो के बारह पीर।गुरु गोरक्ष नाथ आये।गुरु गोरक्ष नाथ जाये।गुरु गोरक्ष नाथ महादेव जी की डिब्बी में जाय समाये।गोरक्ष डिब्बी महादेव जी के पास पड़ी मढ़ी मसाण।महादेव जी ने गोरक्ष डिब्बी दीन्हीं गुरु के हाथ।गुरु ने गोरक्ष डिब्बी दीन्हीं हमारे हाथ। गोरक्ष डिब्बी जहाँ खाई वहाँ दबी।गोरक्ष डिब्बी गोरक्ष फ़टकार।पढ़कर मारूँ मंगलवार।काले उड़द गौरी राई।चौराहे की मिट्टी मढ़ी मसाण की विभुति माई।जिसको ये लगे वो कूदे नो नो ताल।जो नहीं लगे तो माया मछिन्द्रनाथ की करोड़ करोड़ दुहाई।अन्न जल को तरस जाये।गोबर खाये।विष्टा खाये।नीचे सिर ऊपर पैर कर कपड़े फाड़ जंगल में भाग जाये।फिर कर कभी नहीं देखें घर बार।भरमता फिरें दसों द्वार।शब्द साँचा पिण्ड काँचा।फुरे मन्त्र ईश्वर महादेव तेरी वाचा फिरें।घट पिण्ड की रक्षा श्री त्रिपुर बाला सुन्दरी माई करें।इतना गोरक्ष फ़टकार मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया।गोरक्ष टिल्ले पर गादी बैठ राजा भृतहरि ने राजा गोपीचन्द को पढ़ कथ कर सुनाया।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

श्री नाथ सिद्धों का डाकिनी मन्त्र

श्री नाथ सिद्धों का डाकिनी मन्त्र

सतनमो आदेश।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी चढ़ो चढ़ो शूरवीर।धरती चढ्या पाताल चढ़ पग पाली चढ्या।कौन कौन वीर।हनुमान वीर नाहर सिंह वीर।चढ्या धरती चढ़ पग पांव चढ़ी।एडी चढ़ी।मुरचे चढ़ी।मुरचे चढ़ी।पिण्डी चढ़ी।पिण्डी चढ़ी।गोड़ा चढ़ी।गोड़ा चढ़ी।जांघ चढ़ी।जांघ चढ़ी।कटि चढ़ी।कटि चढ़ी।पेट चढ़ी।पेट सू धरणी चढ़ी।धरणी सू पांसली चढ़ी।हिया सू छाती चढ़ी।छाती सू खुवा चढ़ी।खुवा सू कण्ठ चढ़ी।कण्ठ सू मुख चढ़ी।मुख सू जिव्हा चढ़ी।जिव्हा सू कान चढ़ी।कान सू आंख चढ़ी।आंख सू लिलाट चढ़ी।लिलाट सू सीस चढ़ी।सीस सू कपाल चढ़ी।कपाल सू चोटी चढ़ी।हनुमान नाहर सिंह चले वीर समद वीर दीठ वीर आज्ञा वीर सोसन्ता वीर ये वीर चढ़े।इतना डाकिनी मन्त्र सम्पूर्ण भया।शून्य की गादी बैठ श्री सदाशिव शम्भुजती गुरु गोरक्ष नाथजी ने आपो आप सुनाया।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

मसान मंञ-2

मसान मंञ

श्री नाथ सिद्धों का मसाण मन्त्र

सतनमो आदेश।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी इजुली विजुली वज्जर किवाड़।वज्जर पहिने अपने अंग।विभुति भरी मढ़ी मसान।भूत प्रेत वैताल जिन्न खईस शैतान।उलटी विजुली मारें गदा की चोट।और मैं बचूं काल भैरव की गदा की ओट।लीला घोड़ा लाल लगाम हरी जीन।तोय बैठे मुहम्मद वीर।मुहम्मद वीर मुहम्मद वीर सैय्यद पठान।बैठ गुरु गोरक्ष नाथजी के चरणों में पढ़े कुरआन।विस्मिल्लाह अर रहमान निर् रहीम।अकलाहेल्लाह।इललिल्लाह।नूरे मुहम्मद सललिल्लाह।चल गढ़ ग़जनी के मुहम्मद वीर।तुझपे मेलु वचनों का तीर।मुहम्मद वीर मार मार करता आवें।मुहम्मद वीर बाँध बाँध करता आवें।चौपटा को बाँध।मसाण को बाँध।चिता भूमि को बाँध।मृतक शव की अर्थी को बाँध।मुआ मुर्दा को बाँध।जलती चिता को बाँध।बाँध बाँध ऐसे बाँध।जैसे लंका पति रावण पुत्र मेघनाद ने ब्रम्हास्त्र से बाँधा अंजनी सुत हनुमान।नहीं बाँधो तो तीन लाख तैतीस हजार वीर पैग़म्बरों की लाख लाख आन।काल भैरव काली जटा।कानों कुण्डल हाथ त्रिशुल चिमटा।काल भैरव खेलें रात दिन चौपटा।सवासेर का तोसा खायें।अस्सी कोस का धावा लगाये।बैठ सभा में सुमरुं तोय।सबकी दृष्टि बाँध दे मोंहि।बंगाल खण्ड कामरूदेश की कामाक्षा देवी।जहाँ बसे इस्माईल योगी।इस्माईल योगी ने लगाई एक बाड़ी।बाड़ी को सींचे फूला मालिन।बाड़ी की रखवाली करें गांगली तेलिन।बाड़ी में उपजी फूलों कु क्यारी।क्यारी में से फूल चुनें लोना चमारि।फूल चुन कर के लोना चमारी गई मढ़ी मसाण में।सोते को जगाय लावें।खड़े को चलाय लावें।खाते को बुलाय लावे।बैठे को उठाय लावे।रूठे को मनाय लावें।भागते को पकड़ लाये।काचा को।कलुआ को।भूत को।प्रेत को।जिन्द को।वैताल को।शैतान को।कसाई को।भंगी को।डोम को।मेहतर को।चंडाल को।चमार।मुसलमान को।क्षत्रिय को।ब्राम्हण को।वैश्य को।शूद्र को।पीर फ़क़ीर को।मुल्ला मौलवी को।देव को।दानव को।ब्रम्ह दैत्य को।देवी को।पितृ देव को।नाहर सिंह वीर को।औघड़ वीर को।मनसाराम सेवड़ा को।गंगाराम अघोरी को।बाँध बाँध कर लावें।घट पिण्ड की बहत्तर बला को।किये कराये तेरह सौ तन्त्रों को।लगे लगाये चौदह सौ मन्त्रो को।भेजे भेजाये पन्द्रह सौ यंत्रो को।हाड़ चाम के सात रोगों को।बाई बादी गंठिया रोग को।कनखलाई मुआबस बरीग्यार रोग को।पीलिया रोग को।हाड़ हाड़ से।चाम चाम से निकाल कर।भस्म कर डालो हे वीर बलि हनुमान।अंजनी पुत्र हनुमान।गदा दांये हाथ।मार मार पछाड़ो दुष्टों को पर्वत बायें हाथ।उठो वीर हनुमान।करो हुँकार।राम नाम की झंकार।आते की सीमा बाँध।जाते की सीमा बाँध।अपनी पूंछ से मारो फटकार।फ़टकार से दुश्मन करें है हा हा कार।मेरा हकाला कारज सही नहीं करें ।तो माता सीता माई का कंगन फूट भूमि पे गिरे।माथे का सिन्दूर बहकर कर नीचे गिरे।लिलाट की बिंदी छूट कर नरक कुण्ड में पड़े।मेरा सतगुरु का हकाला चलाया नहीं चलें।तो माता कामाक्षा देवी की जटा उखाड़ खून में स्नान करें।महाकाल की करोड़ करोड़ दुहाई फिरें।चल तो सही।इतना मसाण मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया।शून्य की गादी बैठ अवधूत दत्तात्रेय नाथजी ने आपो आप सुनाया।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

श्री नाथजी का मसाण मन्त्र

श्री नाथजी का मसाण मन्त्र

सतनमो आदेश।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी विस्मिल्लाह अर रहमान।निर रहीम।लाइल्लाह।इललिल्लाह।मुहम्मद रसूलिल्लाह।मुसलमानी अवदानी।मरी न खायें।पड़ी न छोड़े।वे मुसलमान वहिश्त को जाये।हुआ ईद का रोज।गसल कर सैय्यद नहाया।बाजा बम्ब नगाड़ा।बख्तर तोप मंगाय दिया।प्याले सहायवा।सब चल खाये चौकी।चौकी पे चौकी चली।अम्बर हुआ सेत।सैय्यदों से रारि हुई तरवर तारागढ़ के खेत।खिंगसवार सा घोड़ा नहीं।मीरांन साहब सा मर्द वहीं।जिसने सरवार तारागढ़ का किला तोड़ा।सिद्ध अजयपाल सा देव नहीं जिसने सात सौ चक्र चलाया।मीरांन साहब पढ़ी सातबसौ छियासी बार नमाज़ वहाँ का वहीं ठहराया।आतिलकुर्सी बन्द क़ुरआन।घाटे बाढे तुहि समान।आकाश बांध पाताल बाँध बाँधे नदी तालाब।देह को बाँध धड़ को भी बाँध कहाँ हुय जाय।मरघटिया मसाण हहिया मसाण जहिया मसाण फ़लकिया मसाण मिरगिया मसाण कमेंदिया मसाण सिलसिलिया मसाण काचिया मसाण नूरिया मसाण कालिया मसाण पीलिया मसाण मूंगिया मसाण दूधिया मसाण ।काल को बाँध।देव को बाँध।ब्रम्ह हत्या को बाँध।चुड़ैल को बाँध।मुआ मुर्दा को बाँध।मरघट के भैरव को बाँध।पिशाचिनी को बाँध।राक्षस को बाँध।पिशाच को बाँध।प्रेतराज को बाँध।पीर मुर्शिद जिन्नात को बाँध।भूतनी प्रेतनी को बाँध।काचा कलुआ को बाँध।बाँध बाँध जल्दी बाँध।घट में बाँध।पिण्ड में बाँध।कपाल में बाँध।हाड़ हाड़ में बाँध।चाम चाम में बाँध।आंख नाख कान मुँह में बाँध।पेट कमर कलेजे में बाँध।दोनों जांघ औऱ पैर की पिण्डली में बाँध।पीछे की पींठ और गले की गर्दन में बाँध।पैरों के तलवों और सिर की चोटी में बाँध।बीस अंगुलियों औऱ उनके नाखूनों में बाँध।नाभी में बाँध।गुदा में बाँध।रोम रोम में बाँध।बाल बाल में बाँध।नवनाड़ी बहत्तर कोठा में बाँध।हाड़ चाम औऱ रज बीरज की काया से।निकाल कर लावें।पकड़ कर लावें।बाँध बाँध कर लावें।पृथ्वी के देवी देवताओं को बाँध कर लाये न लाये।तो सुअर काट सुअर की बोटी दाँत पर दबायेगा।चौपटा मढ़ी मसाण घाट वाट गली तालाब कुआँ पनघट से बाँध बाँध कर वश में न करें तो कपूरी धोबिन की नाँद लोना चमारी के कुण्डे में पड़े।सूर्य चंद्रमा हमारी सांख भरें।इतना मसाण मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया।मक्का मदीना में सिद्धासन बैठ हाजी पीर बाबा रतन नाथ जी ने सूफ़ी सिद्धों को पढ़ कथ कर समझाया।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

श्री नाथ सिद्धों का कुण्डा मंत्र

श्री नाथ सिद्धों का कुण्डा मंत्र

सतनमो आदेश।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी कुण्डा कुण्डा कुण्डाला।कुण्डे बैठा गुरु गोरक्षनाथ बाला।कुण्डे बैठी सरिया माई।जिसने पर्दे पीछे जोग की बात छिपाई।प्रह्लाद भक्त को भगवत भक्ति की युक्ति बताई।कुंण्डे बैठे महऋषि अत्रि ध्यानी।सत्ययुग में माता अनुसुइया जिनकी पतिव्रता नारी।कुण्डे बैठे राम लक्ष्मण सीता माई।त्रेतायुग में जिनकी फिरें दुहाई।कुण्डे श्री कृष्ण और राधा रानी।द्वापरयुग में चली उनकी प्रेम योग कहानी।कुण्डे बैठे राजा परिक्षत ज्ञानी।कलियुग में सब राजाओ ने ज्यांकी सत्ता मानी।कुण्डे बैठी सती कुन्ती माई।पांचो पाण्डव लिये बुलाई।पांचों मन में बात विचारी।कुरुक्षेत्र में कौरवों को सेना सहित संहारी।कुण्डे बैठी द्रौपदी रानी।जिसको सूर्य नारायण ने अक्षय कुण्डा दिया भारी।जो कभी न होय खाली।तब दुर्वासा मुनि मन मे बात विचारी।तब रुद्र ऋषि ने पांडवो की परीक्षा ली भारी।तब घोर संकट में रानी कृष्ण को पुकारी।बैठ गरुड़ पर पहुंचे मुरारी।योगमाया से बात जानी सारी।चावल का एक दाना मुँह में चखा सुदर्शन धारी।समस्त ब्रम्हाण्ड के जीव तृप्त हो कर हो गये पेट भारी।उसी समय से दुर्वासा ऋषि ने द्रौपदी के कुण्डे माना जगत उद्धारी।तब कुण्डा जग में लिया बरताय।कहे दत्तात्रेय नाथ जी सुनो गोपीचन्द भृतहरि।ऐसी है कुण्डे की महिमा भारी।काजी वरजा सूरा।ब्रम्हा वरजी गाय।ऊंच नीच को छोड़ कुण्डे में खाये।वो प्राणी लख चौरासी की बेड़ी तोड़ शिव में समाये।जो करें कुण्डे से भ्रांति उसको काल भैरव खा जाये।कुण्डा हिलाया न हलें।कुण्डा चलाया न चलें।कुण्डा रहे अनठौट।कुण्डा चलें काशी कोतवाल काल भैरव की ओट।काल भैरव कालिया वीर।जा बैठा सात समुद्र की तीर।सुमरें सो तु हाजिर आवें।फिर हाजिर नहीं आवें तो माता कालिका का पिया दूध हराम करें।इतना कुण्डा मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया।गिरिनार गिरी की शिला पर गादी बैठ अवधूत दत्तात्रेय नाथजी ने राजा गोपीचन्द राजा भृतहरि को पढ़ कथ कर समझाया।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश

श्री नाथ सिद्धों का खप्पर मन्त्र

श्री नाथ सिद्धों का खप्पर मन्त्र

सतनमो आदेश।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी खप्पर खप्पर महाखप्पर।खप्पर धरती खप्पर आकाश।खप्पर में तीन लोक चौदह भुवन सप्त पाताल करें निवास।पहला खप्पर ओउमकार का।दूजा गुरु गोरक्षनाथ जी का।तीजा खप्पर श्री नाथ सिद्धों का।चौथा खप्पर नवखण्ड धरती माई सारी।पांचवा खप्पर गौरां पार्वती माई की ज्योति प्रकाश।कौन खप्पर आटे घाटे।कौन खप्पर ब्रम्हा बांटे।कौन खप्पर खाये खीर।कौन खप्पर उद्धारे शरीर।चांदी खप्पर आटे घाटे।स्वर्ण खप्पर ब्रम्हा बांटे।ज़हरी खप्पर खाये खीर।मिट्टी खप्पर उद्धारे शरीर।कहे महादेवजी सुनो माया मछिन्द्रनाथ।चौपटा पर ध्यान लगावों।मढ़ी मसाण में रहो।खप्पर में खाओ पीओ।काली पुत्र काल भैरव को ध्यावों।आदि भैरव युगादि भैरव।काली के पुत्र काल भैरव।काल भैरव काला केश।कानों मुन्दरा भगवा भेष।तुमको ध्यावें गौरी नन्द गणेश।सतगुरु का बालक करता फिरे आदेश।काला पीला तोतला तीनों रहे पाताल।मस्तक बिन्दी सिन्दूर की गणेश काल भैरव हनुमान ये तीनों दुर्गा माई के योद्धा घट पिण्ड की रक्षा करें सिद्ध अजयपाल।इतना खप्पर मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया।कैलाश गिरी पर्वत शिला पर देवाधिदेव महादेव जी ने माया मछिन्द्र नाथ जी को कान में सुनाया।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

श्री नाथ सिद्धों का श्री काल भैरव प्याला मन्त्र

श्री नाथ सिद्धों का श्री काल भैरव प्याला मन्त्र

सतनमो आदेश।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी जल का लवण कमल का फूल।पंचतत्व का एक ही मूल।निपजिया धर्म तत्वसार।झेलो काल भैरव प्याला उतरो भवसागर से पार।कहे गुरु गोरक्ष नाथजी सुनो गोपीचन्द भृतहरि।काल भैरव प्याले की महिमा अपार।जिसको जाने चार जुगों से सारा संसार।प्याला प्याला महाप्याला।प्याला पिया महादेव औऱ गौरां पार्वती माता।वे दोनों है इक्कीस ब्रम्हाण्ड के भाग्य विधाता।यहीं प्याला पी सीता माई ने हनुमान जी को दीन्हां।काया को अमरत्व कर चारों युगों में विद्यमान रहने का वरदान दीन्हां।विश्वामित्र ऋषी से इसी प्याले को राजा हरिश्चन्द्र रानी तारा ने लिया।सत्य वचन के लिये अपना सब कुछ त्याग दिया।यहीं प्याला मर्यादा पुरूषोत्तम रामचन्द्र ने पिया।रावण कुम्भकर्ण सहित राक्षसों का नाश किया।इसी प्याले को नरोत्तम श्री कृष्ण ने ग्रहण कीन्हां।कंस को मार कर श्री मद्भागवत गीता का उपदेश अर्जुन को दीन्हां।यही प्याला राजा बलि ने सतगुरु की आज्ञा टाल पीन्हां।तीन पैर भूमी दान वामन भगवान को दीन्हां।प्याला पिया सरिया कुम्हारी माई।जिसने पर्दे पीछे बात छुपाई।प्याला पिया कुन्ती माई।पांचो पाण्डव ओर रानी द्रोपदी लिया बुलाई।पांचो मन में बात विचारी।जग में लिया बरताय।काजी वरजा सूरा।ब्रम्हा वरजी गाय।इस विधि काल भैरव प्याला पियें।प्याला हिलाया न हिले।प्याला चलाय न चलें।प्याला रहे अनठोंट।काल भैरव प्याला चलें पदमावती माई की ओट।पदमावती पदमावती पदम् शंखिनी।भखै मद अमृत वास।काल भैरव हाजिर हजूर खड़ा है।पदमावती देवी के साथ।बंम बंम बंम काल भैरव बटुक नाथ।इतना काल भैरव प्याला मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया।मानसरोवर तीर्थ पर सिद्धासन बैठ कर श्री सदाशिव शम्भुजती गुरु गोरक्ष नाथ जी ने राजा गोपीचन्द राजा भृतहरि की कान में सुनाया।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

श्री हँसा गायत्री मंत्र

श्री हँसा गायत्री मंत्र

सतनमो आदेश।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी अखण्डी ब्रम्हण्डी आशा।मन पवन नहीं पहुंचे जहाँ रहे हँसा का वासा।हँसा की काया।हँसा की माया।हँसा ने पड़े पिण्ड को आन चेताया।हँसा बोले।धरती डोले।हँसा भग में पीवें पाणी।यही बात सकल सिद्धों ने मानी।हँसा बोले अनहद वाणी।हँसा बोले अमृत वाणी।हँसा बोले अलख निर्वाणी।हँसा मांही अलख निरंजन की काया।हँसा ने सारी को जगाया।।हँसा हँस देश का वासी।सतगुरु मिल्या पूरा लख चौरासी काट देसी।दीपक साथ उजाला।परम् पतंगा ज्योति में पड़े।फोड़ ब्रम्हाण्ड हँसा।घर छोड़ अपने देश चलें।आगे चल रे हँसा छोड़ जीवणा।धर्मराज को चोखा लेखा देवणा।सत सिंहासन सत ही मूल।सत की बाड़ी सत का फूल।जहाँ अमरापुर गाँव आया।वहाँ हँसा पुग जाया।कहे गुरू गोरक्षनाथ सुनो गोपीचन्द भृतहरि।हँसा मन्शा दोनो सच्चे राजा योगी दोनो ऊँचे।मन्शा डूबे हँसा तरे।इस विधि राजा योगी की सेवा करें।इतना हँसा गायत्री मंत्र जाप सम्पूर्ण भया।अर्बुदांचल पर्वत की शिला पर सिद्धासन बैठ श्री सदाशिव शम्भुजती गुरु गोरक्ष नाथजी ने राजा गोपीचन्द राजा भृतहरि को कान में सुनाया।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

श्री इन्द्र गायत्री मंत्र

श्री इन्द्र गायत्री मंत्र

सतनमो आदेश।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी अक्षय योगी अमर काया।इन्द्र बैठा अमर वृक्ष की छायां।देख लो परमज्योति प्रमोद लो काया।ओउम सोहंम शब्द अपरम्पार।गुरु मंत्र आर पार।अक्षय बुद्धि जय जय कार।त्रिकुटी मालूम हुई झणकार।इन्द्र जोगी इन्द्र काया।इन्द्र हैं इन्द्र की छायां।गुरु बिना इन्द्र नहीं होय।ऊपर अलख पुरुष की छायां।सोधल्यो घट पिण्ड में शुद्ध करल्यो हाड़ चाम की काया।कहे गुरु गोरक्षनाथ जी सुनो गोपीचन्द भृतहरि ये भेद कोई विरला पाया।इतना इन्द्र गायत्री मंत्र जाप सम्पूर्ण भया।पुष्कर क्षेत्र में श्री सदाशिव शम्भुजती गुरु गोरक्ष नाथजी ने राजा गोपीचन्द राजा भृतहरि को समझाया श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

श्री भोम गायत्री

सतनमो आदेश।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरूजी ओउम सोहंम का अगम निगम भेद सतगुरु को चेला ने बताया।चेला ऊपर राखो छायां।चूंटी भर लक्ष्मी की धरी।तो तीन लोक करतार करी।वां करता ने जीव उपाया।जीव देख बीसठ नहीं आया।आया बीसठ लिया देख।भेंक भगवान राखें ज्यांकी टेंक।जे झूठ बात कहो मत कोई।भोम गायत्री मंत्र का इतना फल होई।कहे गुरु गोरक्ष नाथ जी सुनो गोपीचश्री भोम गायत्रीन्द भृतहरि।भोम गायत्री मंत्र का जपो जाप।अलख निरंजन आपो आप।इतना भोम गायत्री मंत्र जाप सम्पूर्ण भया।उज्जयिनी नगरी क्षिप्रा नदी के घाट पर सिद्धासन बैठ श्री सदाशिव शम्भुजती गुरु गोरक्ष नाथ जी ने राजा गोपीचन्द राजा भृतहरि को कान में सुनाया।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

अमर गायत्री मंत्र

अमर गायत्री मंत्र

सतनमो आदेश।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी अक्षय पिण्ड अमर काया।अमर गायत्री मंत्र जाप जोगी की चार जुगों से माया।अमर घोड़ा अमर माली सिंचनहार।कहे गुरु गोरक्षनाथ सुनो गोपीचन्द भृतहरि।अमर गायत्री मंत्र की राखें आस।मरें नही पिण्ड गलें नही हाड़ नहीं जाये स्वास।अमर गायत्री मंत्र की क्रिया करें।वो योगी मुआ मुर्दा सरजीवन करें।पड़े नहीं पिण्ड मरें नही हाड़ चाम ओर पवन पानी की काया।सतगुरु प्रताप ह्रदय बीच समाया।ज्योति में ज्योति मिलाया।टीप तो टीकाजी राखें काल भैरव राखें कपाल।भृकुटी तो भद्रकाली राखें हथेली राखें हनुमान।नाभि तो राखें ब्रम्हा जी गुदा राखें गणेश।कण्ठ राखें शारदा नाक तो राखें वासुदेव नारायण मस्तक राखें महेश।इतना अमर गायत्री मंत्र जाप सम्पूर्ण भया।सिद्ध ज्वालेन्द्र नाथ जी मण्डली में श्री सदाशिव शम्भुजती गुरु गोरक्ष नाथजी ने राजा गोपीचन्द राजा भृतहरि को कान में सुनाया।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

श्री नाथजी के अन्य गायत्री मंत्र

श्री नाथजी के अन्य गायत्री मंत्र

1.श्री हँस बाला गायत्री मंत्र

सतनमो आदेश।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी हँसा आप हँसा जाप।निर्मल देही ह्रदय रहे न पाप।हँस रूपी।भँवर रूपी।जूनी से न्यारे रहे।एक अलख निरंजन आपो आप।ॐ हँसाय विदमहे महाहँसाय धीमही तन्नो हँस बाला प्रचोदयात।इतना हँस बाला गायत्री मंत्र जाप सम्पूर्ण भया।कंदली वन में सिद्धासन बैठ सदाशिव शम्भुजती गुरु गोरक्ष नाथ जी ने राजा गोपीचन्द राजा भृतहरि को कान में सुनाया।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

2.श्री मृतक बाला गायत्री मंत्र

सतनमो आदेश।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी डरे डुंगरे रचे धर्मशाला।जहाँ बैठकर धूप ध्यान करें श्री मृतक देव बाला।पूछ लेव कंवारी कन्या।जहाँ सोय पंच महेश्वर।ॐ मृतक बाला विदमहे महामृतक बाला धीमही तन्नो मृतक बाला प्रचोदयात।इतना मृतक बाला गायत्री मंत्र जाप सम्पूर्ण भया।हरिद्वार क्षेत्र हर की पैड़ी पर बैठकर श्री सदाशिव शम्भुजती गुरू गोरक्ष नाथ जी ने सिद्ध चौरंगी नाथ जी को कान में सुनाया। श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

3.श्री शंख बाला गायत्री मंत्र

सतनमो आदेश।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी ॐ अज्जर धरती वज्जर काया।देख लो ज्योति प्रमोद लो काया।सवा हाथ का पुतला बैठा अटल ज्योति कि छायां।हाथ में कौलीं मुख में बाला।ह्रदय में जपो तपो श्री त्रिपुर सुन्दरी बाला।ॐ शँखबाला विदमहे महाशंखबालाय धीमही तन्नो हिंगलाजाय प्रचोदयात।इतना शंख बाला गायत्री मंत्र जाप सम्पूर्ण भया।शून्य की गादी बैठ श्री सदाशिव शम्भुजती गुरु गोरक्ष नाथ जी ने आपो आप सुनाया।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

4.श्री सरजीवन बाला गायत्री मंत्र

सतनमो आदेश।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी अकारे ब्रम्हा,बकारे विष्णु,मकारे महेश।सतशब्द को सींचने सतगुरू आये।आप बोया मूल।मूल पर आया पान।पान पर आया कुर।कुर पर आया फूल।फूल पर आया फल।फल की छायां कौन बैठे।आपका नाम क्या।अदल।अदल कहाँ से आया।शून्य महाशून्य से आया।सूखे से हरिया किया।एकाएकी निराभेंखी।अदल पाया जीव।कहे गुरु गोरक्ष नाथ सुनो गोपीचन्द भृतहरि सुरजीवन बाला गायत्री मंत्र जीव को ले उतरे भवसागर से पार।ॐ सुरजीवन बाला विदमहे चण्डिकाय धीमही तन्नो शिव प्रियाय प्रचोदयात।इतना सुरजीवन बाला गायत्री मंत्र जाप सम्पूर्ण भया।कैलाश पर्वत की शिला पर सिद्धासन बैठ श्री सदाशिव शम्भुजती गुरू गोरक्ष नाथ जी ने राजा गोपीचन्द राजा भृतहरि को कान में सुनाया।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

5. श्री मृत संजीवनी बाला गायत्री मंत्र

सतनमो आदेश।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी ओउम शून्य आकाश।शून्य धरती शून्य ज्योति प्रकाश।ओउम सोहंम संजीवन काया।बीच यम जम का फांस।सतगुरु अविनाशी खेल रचाया।तंत्र संजोगी मृत संजीवनी बाला।फुरो मन्त्र जति गुरु गोरक्षनाथ बाला।महादेव जी मृत संजीवनी विद्या दैत्य गुरु शुक्राचार्य को पढ़ाये।शुक्राचार्य मृत संजीवनी विद्या से मृत शव को जगाये।पुतले में हँसा आके समाये।ह्रदय हिलें गिर्दय चलें।देखो सिद्धों पुतले चलें।कहाँ से आया।कहाँ को जाना।कौन पुरुष ने दीन्हीं छायां।अगम से आया।निगम को जाना।गुरु अविनाशी दीन्हीं छायां।घटे आकाश।घटे पाताल।घटे गतगंगा भरपूर।सूर्य चन्द्रमा सांख भरें।सिद्ध के मुख से बरसे नूर।आओ अवधूत शंख ढालिये।शिव पूजिये।हँसा पावे मोक्ष मुक्ति फल द्वार।कहे गुरु गोरक्ष नाथजी सुनो गोपीचन्द भृतहरि।मृत संजीवनी बाला गायत्री मंत्र का एक सौ आठ बार जप करें।वो योगी मुआ मुर्दा जीवित करें।ॐ महामृत्युंजयाय विदमहे महासंजीवनी बाला धीमहि तन्नो मृत संजीवनी बाल प्रचोदयात।इतना मृत संजीवनी बाला गायत्री मंत्र जाप सम्पूर्ण भया।काशी क्षेत्र काशी कोतवाल काल भैरव पींठ पर सिद्धासन बैठ श्री सदाशिव शम्भुजती गुरु गोरक्ष नाथजी ने राजा गोपीचन्द राजा भृतहरि को कान में सुनाया।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

6.अमृत बाला गायत्री मंत्र

सतनमो आदेश।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी ओउम जपो तपो श्री अमृत बाला।उपज्या अमृत सुन्दरी बाला।आओ चन्द्र बरसाओ अमृत नूर।ध्यान देश में योगी अवधूत।गतगंगा यमुना बाई।बाला सरस्वती शक्ति उपाई।शिव शक्ति मिल पँथ चलाया।नाद बिन्द का अमिरस प्याला।अमर बीज अमर काया।रती तोल नेत्र अंजनी बाला।उठो नारायणी सींचो अमिरस।अवधूत योगी भोगे अहिंरस।सूर्य चन्द्र भरते सांख।राख राख श्री सदाशिव शम्भुजती गुरु गोरक्ष नाथ जी राख।आते यमराज को मार।उड़ते प्राण को राख।गलते हाड़ चाम की काया को राख।अघोर पिण्ड पड़न्ता राख।गतगंगा जायके अनभय प्रकाश।ॐ अमृत हुक्म जापाय विदमहे महाअमृत बाला धीमही तन्नो अमृत बाला प्रचोदयात।इतना अमृत बाला गायत्री मंत्र जाप सम्पूर्ण भया।माया मछिन्द्रनाथ जी की मण्डली में अवधूत दत्तात्रेय नाथजी ने राजा गोपीचन्द राजा भृतहरि को कान में सुनाया।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

काल परमहँस गायत्री मन्त्र

काल परमहँस गायत्री मन्त्र (इसको नाथ पँथ में कालास्त्र भी कहते है)

सतनमो आदेश।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।ओउम काल,सोहंम काल।काल और महाकाल।अलील मध्ये अज्जर काल।वज्जर काल अनभय काल निर्भय काल।ये पांच काल हमारे पास।अमर काल भँवर काल ज्योति काल सरजीवन काल ये पांच काल हमारे सतगुरू।हमारे कारण दुनियां मरे जरें।ब्रम्हा जी सृष्टि की रचना करें।विष्णु जी सृष्टि का पालन करें।महेश सृष्टि का संहार करें।नवखण्ड पृथ्वी को शेषनाग सिर पर धारण करें।सात वार बारह राशि पन्द्रह तिथि सत्ताईस नक्षत्र घटे बढ़े चलें।काल परमहँस गायत्री मंत्र को कौन जपन्ते।शिव जपन्ते।ओउम तो कौन।सोहंम तो कौन।तत्व तो कौन।ओउम तो शिव सोहंम तो शक्ति।परमहंस तत्व।ओउम हर हर हर महादेव।बंम बंम बंम।दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने मुआ मुर्दा सरजीवन किया।अलील की काया।अलील की माया।अलील पुरुष ने घट पिण्ड को आन चेताया।गले नहीं हाड़ चाम की कोठी स्थिर रहें नाद बिन्द की काया।माया मछिन्द्रनाथ जी ने काल परमहँसास्त्र चलाया।किलकारी मार कालिका माई ने काल को भगाया।काली कंकाली महाकाली।कृष्ण वर्णी।शव वाहिनी।रुद्रदेवता की पोषणी।हाथ खड़ग खप्पर धारिणी।गले मुण्डमाला।हंसमुखी।जिव्हा ज्वाला।दन्तकाली।मधमांसकारी चौपटा मढ़ी मसान की रानी।मांस खायें।मध पी पीवें।रिद्धि सिद्धि लियाओ भस्मन्ती माई।भस्मन्ती माई जहाँ पर पाई।तहाँ रमाई।सत्य की नाती।धर्म की बेटी।इन्द्र की साली।अचलनाथ की चेली।काल की महा काली।नागों की नागिन।जोग को जोगिन।भोग की भोगिन।मन माने तो संग रमाई।नहीं तो मढ़ी मसान में फिरे अकेली।बावन भैरव चौसठ योगिनी छप्पन कलुवा।बोल बंम बंम काली माई की दुहाई।घोर काली अघोर काली।अज्जर काली वज्जर काली।भख जून निर्भय काली।अला बला भख।पापी पाखण्डी को भख।जति सती को रख।ओ काली माई तुम बाला ना वृद्धा।देव ना दानव।नर ना नारी।देवी जी तुम तो हो स्वंय परब्रम्ह काली।प्रथमें काली।द्वितीय कालरात्रि।तृतीय कपालिनी।चतुर्थे काम सुंदरी।पंचमी कामिनी।षष्टमें विरूपाक्षी।सप्तमे उग्रा।अष्टमे घोर रूपा।नवमे नरसिहीं दसमें वराही एकादशे रुद्रा द्वादशे डाकिनी।कालिका देवी के द्वादश नाम ह्रदय में ध्याऊँ।दो हाथ जोड़ तैतीस कोटि देवी देवताओं को जगाऊँ।कहे गुरु गोरक्ष नाथ सुनो नवनाथ चौरासी सिद्धो काल परमहँस गायत्री मंत्र का सुमिरण करें।नाद बिन्द जांके घट जरें।तांकि सेवा ऋद्धि सिद्धि करें।तीन चुल्लू पानी के भरें।निर्भय जोगी जंगल फिरे ।मढ़ी मसान फिरे, फिरे सारे ब्रम्हाण्ड।अनहद नाद घूंघर बोल।गुरु शब्द गुरु ज्ञान।भरे संसार झरें संसार।फिरे योगी अनभय काल।कालिका माई हमारी तुमारी माई।हमको तुमको छोड़ और को ले जाई।तो नवखण्ड पृथ्वी माई में हल चल मच जाई।ॐ कालाय विदमहे महाकालाय धीमहि तन्नो काल परमहँसाय प्रचोदयात।इतना काल परमहँस गायत्री मंत्र जाप सम्पूर्ण भया।गंगा गोदावरी त्रयम्बक क्षेत्र कौलागढ़ पर्वत की अनुपान शिला पर सिद्धासन बैठ सदाशिव शम्भुजती गुरु गोरक्ष नाथ जी ने नवनाथ चौरासी सिद्ध बारह पंथी अनन्त कोटि सिद्धो को पढ़ कथ कर सुनाया।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

श्री श्री १००८

चौदहवीं/अघोर गायत्री मंत्र

चौदहवीं/अघोर गायत्री मंत्र

सतनमो आदेश।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी ओउमकार ओउमकार में ब्रम्हा विष्णु महेश।ब्रम्हा विष्णु महेश में पंच तत्व।पंच तत्व की उत्पन्नी काया।काया में प्रगटी ज्योति।ज्योति में जागी प्रेम ज्योति।प्रेम ज्योति को प्रथम गौरां पार्वती देवी ने उपजाया।आचार विचार कर सरस्वती देवी ने अघोर रचाया।अघोर अघोर महाअघोर।गणेश जी का गजमुख वो भी अघोर।ब्रम्हा जी का कमण्डल वो भी अघोर।विष्णु जी का सुदर्शन चक्र वो भी अघोर।महादेव जी का त्रिशुल वो भी अघोर।कालिका देवी का नृत्य वो भी अघोर।माता अनुसुइया का सतीत्व वो भी अघोर।त्वष्टा ऋषि का यज्ञपुत्र त्रिशरा वो भी अघोर।पवन देव की गति वो भी अघोर। कामदेव की रति वो भी अघोर।नर और नारायण की उर्वशी अप्सरा वो भी अघोर।नारी ओर नर का समागम वो भी अघोर।नारी का भग वो भी अघोर।पुरुष का लिंग वो भी अघोर।भग में लिंग वो भी अघोर।भग में रज वो भी अघोर।लिंग में बिन्द वो भी अघोर।रज बिन्द का पिण्ड वो भी अघोर।कहे सिद्ध कानिफा नाथ सुनो रानी मैंनावन्ती अघोर में अघोर ब्रम्हा जी ने मिलाया।तब नर नारी उपजाया।अघोर गुदा में रहे मस्तक बसे महेश।सुपारी में गणेश विराजै काल भैरव बसे मढ़ी मसान हमेश।गुरु गोरक्षनाथ का चेला भृतहरि तन वश में कर, बांधे घट में मन की लँगोट।काम क्रोध नहीं उपजै काया में, नहीं लागे पिण्ड में काल और दुश्मन की चोट।गौरां पार्वती देवी अघोर गायत्री मंत्र का जप करें।तो शिव के ह्रदय में स्थान मिलें।अघोर गायत्री जरें अज़रा जरें।पीओ वहाँ अमृत का प्याला।अभय मण्डल में सती वाचा।हम को तार।इस जीव के पाप संहार।कुंडे को सुधार।कुंडे में अट्ठारह भार वनस्पति पंच मुद्रा श्रीफल ले के स्थापना की।लक्ष्मण जति उठाया श्रीफल श्रीफल पर सिन्दूर।सिन्दूर चढ़ाया सती सीता माई।सीता माई के सत से रामचन्द्र जी ने अहिल्या उद्धारी।विश्वामित्र ऋषि ने अगम लोक से अघोर गायत्री उतारी।अघोर गायत्री तु तारणी तु तारती।चाचरी भूचरी।खेचरी अगोचरी उन्मुनी।वो निजिया धर्म पद की।रावण नाथ की ।अघोर गायत्री चलें।लंका जरें।भग जरें।रज जरें।लिंग जरें।बिन्द जरें।उसकी रक्षा अलख अविनाशी गुरु गोरक्षनाथ जी करें।गो हत्या,बाल हत्या,स्त्री हत्या,मोर हत्या चोर हत्या ये पंच हत्या टलें।नवखण्ड धरती माई पे लगे जीव को पंच दोष।पितृ दोष,काल सर्प दोष,ग्रह दोष,घृणा दोष,निन्दा दोष।इतने पंच दोष को दूर नहीं करें ।तो माया मछिन्द्र नाथ की करोड़ करोड़ दुहाई फिरें।।अघोर गायत्री ही अलख पुरुष का नाम।जहाँ ज्योति वहाँ परमज्योति।जहाँ परमज्योति वहाँ अलख पुरुष का वासा।अलख पुरुष की जपो अघोर गायत्री टलें काल का पांसा।अलख पुरुष का प्रेम से प्याला पिया।तो प्रचण्ड पाप परले हुआ।मढ़ी मसान का मुआ मुर्दा अघोर गायत्री मंत्र से सरजीवन हुआ।ॐ अघोराय विदमहे महाअघोराय धीमहि तन्नो अघोराय प्रचोदयात।इतना अघोर गायत्री मंत्र सम्पूर्ण भया।कामरूदेश की कामाक्षा देवी शक्ति पीठ में बैठ कर सिद्ध कानिफा नाथ जी ने राणी मैंनावन्ती को पढ़ कथ कर सुनाया।श्री नाथजी गुरूजी को आदेश।आदेश।आदेश।

श्री श्री १००८ 

अघोर बाला गायत्री मंत्र

अघोर बाला गायत्री मंत्र

सतनमो आदेश।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी सोने की इंद्री रुपे की धार।धरती माई आपको कोटि कोटि नमस्कार।धर्म की धोती अलील का प्याला।अजरी वजरी चेते गुरु गोरक्षनाथ बाला।धरती की डिब्बी।शक्ति ने बाली।ब्रम्हा विष्णु महेश ने लकड़ी डाली।शिव ने रान्धी।शक्ति ने खाई।अन्नपूर्णा महामाई।हाथ खड़्ग खप्पर गले मुण्डमाला।शिव शक्ति जपो तपो श्री त्रिपुर सुंदरी बाला।ॐ अमरी बांधे अमरी बज्जरी बांधे काया।हाथ जोड़ हनुमन्त खड़ा।बांध ल्याऊं शरीर सारा।नोमण सार भस्म कर डाला।सोने की सुराही रुपे का प्याला।भर भर पियें काल भैरव मतवाला।भजो भजो अलील पुरुष भजो।अनादि फुरो।ऋद्ध फुरो।सिद्ध अलील भजो।अलील पुरुष की चरण कमल पादुका को नमस्कार।ॐ आदि अलील पुरुष की माया।जपो अघोर बाला गायत्री मंत्र अमर रहे काया।अघोर अघोर महा अघोर।ब्रम्हा जी का वचन अघोर।विष्णु जी का शेषनाग अघोर।।महादेव जी की जटा अघोर।हनुमान जी की गदा अघोर।युधिष्ठिर का धर्म अघोर।कामाक्षा देवी का रज अघोर।मेरी वज्जर की काया।जुगति सो मुक्ति।आवें सो जावें।सिद्ध होय वहाँ काल न आवें।कहे लक्ष्मण जति सुनो राजा रामचन्द्र जी श्री अघोर बाला गायत्री मंत्र नित जपे तपे।बारह कोस काल निकट नहिं आवें।ॐ अघोर बाला विदमहे अन्नपूर्णा देवी धीमहि तन्नो अघोर बालाय प्रचोदयात।इतना अघोर बाला गायत्री मंत्र जाप सम्पूर्ण भया।गोरक्ष टिल्ले शिवपुरी धाम पर सिद्धासन बैठ लक्ष्मण जति ने राजा रामचन्द्र जी को पढ़ कथ कर सुनाया।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश

श्री श्री १००८

हुकम गायत्री मंत्र

हुकम गायत्री मंत्र

सतनमो आदेश।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी हुकुम से रची धरती।हुकुम से रचे पवन पाणी प्रकाश।हुकुम से रची मेंरुं मेदिनी गिरी पर्वत कैलाश।हुकुम चलाया ईश्वर आदिनाथ।हुकुम से पंचतत्व का भया प्रकाश।हुकुम से ब्रम्हाजी भर दीन्हीं सांख।हुकुम से हनुमन्त वीर चलाई हाँक।हुकुम से गादी गोरक्ष पीर।हुकुम से शक्ति आद ततबीर।हुकुम से कुबेर भण्डारी ऋद्धि सिद्धि पाई।हुकुम से टेलुआ टेल कमाई।हुकुम से अंत चक्र पूर।हुकुम से गत में बरसे नूर।हुकुम से काल भैरव प्रकाश।हुकुम से काल भैरव त्रिपुर बाला सुंदरी के पास।केशर हुकुम पीर मुख चलें।हुकुम बिन मंथन न हिलें।टेलुआ केशर मथकरी त्यार।जुगति चढ़ी देव दरबार।केशर सुरती हैं जग मैंसा।आप ही गुरु आप ही चेला।जुगति संग कौन कौन आय।ब्रम्हा विष्णु महेश आय।जुगति संग सूर्य चन्द्र दो तपे निराधार।जुगति संग धर्मराज धर्मगुसांई जी ले उत्पन्न भये सकल सृष्टि संसार।टेलुआ ठाड़ा दो कर जोड़ देव दरबार।हुकुम होय अलख पुरुष का टेल करूँ हिंगलाज माई के दरबार।आदि का योगी अनादि की माया।सत्य का योगी वज्जर की काया।करें करें न करें।तो भी बहार भीतर कभी न मरें।एकांगन गन्धर्व जाया।छीजै न उपजै विनसे न काया।शब्द होय तां काल न खाया।माया मछिन्द्रनाथ जी ने हुकुमास्त्र चलाया।हुकुम हुकुम करन्ता काल भैरव आया।ओउम सोहंम का सकल पसारा।काल भैरव का आया प्रवाना।उड़ गई तृष्णा काल का स्थानां।परमतत्व के दर्शन कीजै।सुरती सदा गगन घर दीजे।जोगी जुगति में रह्या समाय।तां हंसा को काल न खाय।कहे अवधूत दत्तात्रेय नाथ जी सुनो दसनामी सिद्धो सत्य का सन्त अमरापुर वास।आओ हंसा डरो मति।करो काल भैरव से प्रीति।काल भैरव शिवपुरी पहुँचासी।भागे काल कण्टक मिटें लख चौरासी ।सत्य का योगी युगत की काया।सतगुरु शब्द पर ध्यान लगाया।घट पिण्ड अष्ट कमल वज्जर की काया।शून्य ओउमकार में शिव पार्वती साकार।तब उपजा ब्रम्हण्डाकार।यही जोग महादेव पार्वती ने लिया।यही जोग छहः जतियों को गुरु गोरक्षनाथ जी ओर सात सतियों को माता अनुसुइया ने दिया।यही जोग हमने तुमने पाया।ओउम सोहंम जाप।सतगुरु शब्द ही अजपा जाप।काल भैरव ही सतगुरु आप।ओउम पुरो आसन पवन की माला।ह्रदय में जपो तपो श्री काल भैरव बाला।थान मुकाम की चढ़ती कला।जुमलें में जागते रहें।काल पुरुष ओर यमदूत अला बला कण्टक भागते रहें।भेंक कि टेक बाने की लाज।जिसको राखें सदाशिव शम्भुजती गुरु गोरक्षनाथ भेंक भगवान।भृगु तारा उगिया काली पुत्र काल भैरव मारी हाँक।हंसा घर बार छोड़ मोह माया त्याग अमरापुर पधारिया दैत्य गुरु शुक्राचार्य ओर अलील पुरुष की सांख।अलील अलील पर थल।थल पर भौंर नदी।भौंर नदी पर शिवजात पुरी।शिवजात पुरी में ब्रम्ह कँवल।ब्रम्ह कँवल में निरंजन कँवल।निरंजन कँवल मध्ये उत्पन्न भई माता हुकुम गायत्री।हुकुम गायत्री माई आवें।ओउमकार करन्ती आवें।इकोत्तर सो पुरुषां ले अमरापुर जावें।सोहंमकार करन्ती आवें।लख चौरासी जीया जून को ले चोंगा आहार पानी पिलावें।क्षीर नीर नू पंच बस करनी आवें।जपंत ब्रम्हा विष्णु महेश।पवन पानी नवलख तारा।षट दर्शन मध्ये सतगुरु खड़ा।हाथ खड़ग त्रिधारा।क्या करेगा रूठा जगत हमारा।चार चरण पंचवा मुख अन्न महेश्वर जोगी।अनन्त कोटि सिद्धो को पार ले उतरेगी।हमको तुमको भी भवसागर से पार ले उतरेगी।माता हुकुम गायत्री। राखो हुकुम गायत्री माई लाज हमारी।मैं श्री नाथजी गुरुजी का बालक।लीले का असवार।भेंक भगवान का ग्वाल।ॐ आदिशक्ति विदमहे योगमाया धीमहि तन्नो चण्डिकाय प्रचोदयात।इतना हुकुम गायत्री मंत्र जाप सम्पूर्ण भया।गिरिनार गिरी की शिला पा सिद्धासन बैठ अवधूत दत्तात्रेय नाथ जी ने दसनामी सिद्धो को पढ़ कथ कर सुनाया श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश आदेश।

श्री श्री १००८

सरभंग गायत्री मंत्र

चतुर्थ/सरभंग गायत्री मंत्र

सतनमो आदेश।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी काला घोड़ा काला पलान।जिस पर चढ़े सुलेमान पठान।कौन हिन्दू कौन मुसलमान।कौन का बांध्या जमीन और आसमान।तारिया सतगुरु जागिया मुआ मुर्दा औऱ चौपटा मढ़ी मसान।में सैंया बाबा रहमान।तले धरती धीर धरावै।ऊपर अम्बर सकल पर सोहे।सरभंग पुनः सकल पर ब्यापै।सरभंग इन सकल पर गाजै।चन्द्र सरभंग सकल पर ब्यापै।सरभंग सूर्य की किरण चंद्रमा की ज्योति।मैं सरभंगी चारो वर्ण ओर डाकिनियों का संगी।पापी पाखंडी और दुराचारी को राह बताऊं।सारे जगत को भेद बताऊंगा।मैं औघड़ का चेला।नवखण्ड पृथ्वी पर रम्मत करूँ अकेला।नहीं मैं किसी को भी शीश नवाऊँगा।ऊंचा नीचा राजा पकड़ू एक ही प्याला पिलाऊंगा।पात्र कर पवित्र कर लूं।भ्रांति कभी ना ल्याऊंगा।मैं भटियारी।कामणगारी।कामनिगारी।घर घर लाय लग्यादू न्यारी न्यारी।कामण टूमण करूँ सनेवा।राखूं बरसता मेहवा।शिखर छोड़ दूयूं पाणी।पड़ता कबहुँ न मागे पाणी।जोर करें जाने न दू।इंद्री पकड़ निवाऊँगा।तले को आकाश।ऊपर को धरती माई।उलटी राह चलाऊंगा।राजा को करदयूं काला मेंढा।हाकिम करदूयूँ भैसा।नवनाथ चौरासी सिद्ध बारह पंथियों में बोलूं ऊँचा ऊँचा।क्या त्यागी।क्या बैरागी।क्या सन्यासी।क्या सेवड़ा भोपा भरड़ा भांड।इतने को मूंड माई।मच्छेरी का माथा मुण्ड।मच्छेरण्डी का मुण्ड माथा।मत बांध कुड़ कपट का गाथा।जोगी बड़ा जुगति के मांही।भीतर धरिया ध्यान।जोग सर नख करदूयूँ न्यारा न्यारा।उलटा चरखा चलाऊंगा।उलटा साद समेंटू वाणी।गुरु गोरक्ष नाथजी बोल्या उलटी वाणी।कुँवे ऊपर चादर तानी।मढ़ी मसाण में धूणी घालु।आसन डालूँ डेरा।जगत बुलाऊँ डेरे।हरी लीरी।बावन भैरव चौसठ योगिनी छप्पन कलुआ सवालाख भुतावली सात कामणगारी नो नाहर सिंह।सात बायाँ बीच भायेली वाही म्हारी दासी।उठ मुठ कामण करतूत छल छत्तर धक्का धूम।भूत प्रेत शैतान जिन्द कसाई काचिया मसाण।जलोटिया फलोटिया।चुड़ैल पिशाचिनी मेहतरानी।नजर टपकार। जोगनी तुर्कनी चमारी धोबिन तेलिन।छत्तीस रोग ओर बहत्तर बला बांध बांध कर जल्दी जल्दी लाय।मेरा हकाला कारज सिद्ध नहीं करे तो राजा रामचन्द्र जी लक्ष्मण जति सती सीता माई की करोड़ करोड़ दुहाई फिरे।थल सोधु ओर आसन सोधु सोधु तीजी ताली।इतरे में अटकाऊँ नाड़ा।कदेई न निकले बाला।सूखा छोड़ गर्भ में राखें।तीजी घड़ी बड़ाऊँ बाला।धीरो करो अपचार चलाऊँ।आखर आगे चले ना पाखर।मारूँ मेंख वज्जर की टक्कर।मन्त्र उड़द का गोला बाऊं।पत्थर फोड़ के उड़ाऊँ।सिद्धाई का मुण्डा पकड़ ठोक दूयूँ धड़ के मांही।टिकालिया मसाण की छाईं।लागे फक्कड़ की टक्कर।जंगीसा बादशाह होज्या सुख साख लक्कड़। गुरु गोरक्षनाथ के गोपीचन्द भृतहरि दोऊँ चेले।गढ़ गिरिनार में तपे अकेले।गोपीचन्द और भृतहरि चेतावे चण्डी माई।बंगाल खण्ड कामरू देश से चली चण्डी माई। चण्डी माई हाथों में कंगन काली जटा।माथे सिन्दूर गलें नर मुंडो की माला।चण्डी माई नृत्य करें मढ़ी मसाण चौपटा।चल चल चण्डी माई।नहीं चले तो चरपटी नाथ जी लाख लाख दुहाई।आओ चण्डी माई। उखाड़ो दुश्मन की भुजा।काटो काल की मुण्डी।यमदूतों के पाँवों में डालो बेड़ी।चण्डी चण्डी ।फिरे नवखण्डी।इतना सरभंग गायत्री मंत्र जाप सम्पूर्ण भया।गढ़ गिरिनार की शिला पर सिद्धासन बैठ माया मछिन्द्र नाथ जी ने गुरु गोरक्ष नाथ जी को कान में सुनाया।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

श्री श्री १००८

सरभंग गायत्री मंत्र

तृतीय/सरभंग गायत्री मंत्र

सतनमो आदेश।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी आदि का श्री नाथजी पीछे का हिन्दू ।कोल का पति पत्नी कोल का समागम कोल का आसमान।कोल का बन्दा ,कोल की धरती ,कोल का मुसलमान।भग सरभंग तीन लोक में रज की सृष्टि बनाई।लिंग सरभंग तीन लोक में बिन्द की काया रखाई।धरती सरभंग तीन लोक की रचना रचाई।सूर्य सरभंग तीन लोक की करुणा छाईं।चंद्रमा सरभंग तीन लोक की अमीं बरसाई।भग में लिंग दरसे।भग में रज समाई।लिंग में असँख्य बून्द बिन्द की दरसे।वहाँ ज्योति में ज्योति जगाई।ज्योति में हमारा तुम्हारा निरंजन गुसाँई।गुदा चक्र सरभंग आसन कौन सरभंग से न्यारा हैं। जहाँ शिव शक्ति का समागम हो चार जुगों से न्यारा हैं।सरभंगी सरभंगी बहन भाई।सरभंगी खोजों घट में मांही।सरभंगी का सकल पसारा।सरभंगी सभी से न्यारा।मैं सरभंगी सबका संगी।सबको भेद बताऊंगा।मैं अनघड़ का चेला।रहूँ अकेला।नहीं मैं किसी को शीश झुकाऊँगा।ऊंचा नीचा राजा पकड़ू एक प्याला पिलाऊंगा।गर्व करें संसार पांव सबका झुकाऊँगा।तले को अम्बर ऊपर को पृथ्वी।उलटी राह चलाऊंगा।वज्जर मन्त्र का गोला बाऊं।पर्वत मार उड़ा दूंगा।कहो तो पवन बसाकर राखूं।कहीं तो मेंह बरसाऊंगा।मारूँ मेंख।वज्जर की टक्कर।आखर आगे चले नही पालर।काल बांधू।दुश्मन के सातों अंग बांधू।काम बांधू।कपाल बांधू।दसों दिशा चौसठ वायु बांधू।लूली लँगड़ी बुची मेंली कुचैली का माथा मुंडू।जोगी बड़ा जुगति के मांही।जोगेश्वर धरे सत का ध्यान।सत कर दूं न्यारा न्यारा।मन्त्र तन्त्र यन्त्र की पदवी का गर्व करें तो जला दूं पूरा।सिद्धाई का बाना पूछूं गाड़ दूं दह मांही।लेरी लेरी बावन भैरव चौसठ योगिनी छप्पन कलुआ।शैल शिकारी।रात हाड़ बीज भाली तुम्हारी दासी।हाकिम का मुँह काला कर दूं।नर को बना दूं नारी।राजा कर दूं भैसा।डंकिनी।शंकिनी।भूतनी।प्रेतनी।जिन्द खईस मरी मसाण को बांध बांध कर ठिकरें में धर कर लगा दू वज्जर का ताला।कमर की पीड़ा,मंगरा की पीड़ा,कान की पीड़ा,कलेजे की पीड़ा,पेट की पीड़ा को जड़ से कर दूं खत्म।ताप तेईया चौथेया ज्वर तोड़ू।अटक दो नाड़ी।हज़रत मांगे भाड़ा।जति गोरक्षनाथ जी बोले उलटी वाणी।ब्रम्हाण्ड को तोला।कुआँ ऊपर चादर तानी।आसन मारूँ गहरा।गहरा जा मढ़ी मसाण डेरा।धोल जगा बुलवाओ।ढ़ेर गोरक्षनाथ गुरु का चेला।मढ़ी मसाण में फिरे अकेला।बैठ मढ़ी मसाण में मुआ मुर्दा सरजीवन करें।मुआ मुर्दा बोले।खड़ा पुतला चलें।बंगाल खण्ड कामरू देश से चली चण्डी।हाथ में लिया तेल की हंडी।चण्डी चण्डी।फिरे ब्रम्हण्डी।इतना सरभंग गायत्री मंत्र जाप सम्पूर्ण भया।कैलाश पर्वत की शिला पर पद्मासन बैठ कर माता गौरां पार्वती ने बाल योगी मार्कण्डेय नाथ जी को कान में सुनाया।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

श्री श्री १००८ 

सर्व रोग नाशक हनुमान मंत्र

सर्व रोग नाशक हनुमान मंत्र

मंत्र:- कौरव पांडव कहां गए बन मे गए, बन में क्या करेंगे, बन कटवाएंगे, बन कटवा कर क्या करेंगे, सहस्त्र मन कोयला करेंगे, सहस्त्र मन कोयले का क्या करेंगे, छप्पन छुरी बनाएंगे, छप्पन छुरी का क्या करेंगे, बाय को, फोड़े को ,चीस को, खांसी को , भड़क को, फुंसी को, टोक को, नजर को, सिर- दर्द को, काट पीट के खारे समुंद्र में बहाएंगे, खारे समुद्र में बहा कर क्या करेंगे , बहोड़ (दोबारा ) के उल्टे ने आवे ईश्वरो वाचा पिंड काचा मेरे गुरु का शब्द है साचा देखूं रे बाबा हनुमान तेरे शब्द का तमाशा।

विधि:- इस मंत्र की क्रिया 21 दिन की है साधक बाबा हनुमान जी के सभी नियमों का पालन करते हुए एक माला जप 21 दिन तक हर रोज करें आपका मंत्र सिद्ध हो जाएगा फिर आवश्यकता पड़ने पर मोर के पंख द्वारा या चिमटे द्वारा इस मंत्र द्वारा झाड़ा देने से सभी प्रकार के रोगों का नाश होता है। श्री