विधि:
प्रथम गौ-गोबर से धरती पर धरत्री विक्र के आकार का लेपन करें। वह सुखने के पश्चानत अष्ठगंध से चक्र मे दिखाया शेष नाग जैसा शोष केतकी डंठल से अष्ठगंध स्याही से या अक्षदा से बनावे अब भोज पत्र ऊपर या पाटला के ऊपर या शुभ्र वस्त्र के ऊपर चक्र बनावे अर्शित २७ नक्षत्र १२ राशि ९ ग्रह इत्यादि नाम देकर यह यन्त्र चक्र शेष ऊपर स्थापन करे, यंत्र चक्र के पूर्व दिशा मे दीप गौघृत धूप, दक्षिण दिशा में शस्त्र त्रिशूल, चिमटा, खडांग इत्यादि रखें तथा पश्चिम दिशा मे कलश जल त्रिवेणी संगम या समुद्र जल रखे उत्तर दिशा में खनिज सुवर्ण, चांदी, कोयला तथा वनस्नति वटवृक्ष, पीपल, नीम इत्यरदि मे एक स्थापन करे।
विवरण:-
शेष नाग ऊपर धरत्रि विराजमान है तथा नक्षत्र राशी मे भ्रमण कराते है। जब सिंह कन्या तुला राशी के सूर्य मे शेषनाग का मुख इशान मे अग्नि दिशा मे खो देवें, तथा वृश्चि क, धनु मकर के सूर्य मे शेषनाग का मुख नैवृत्य वायत्य दिशा मे होता है वूषभ मिथुन कर्क के सूर्य के सूर्य में शेषनाग का मुख अग्नि मे नैॠत्य मे दिशा मे होता है ।
अब १२ मास में अश्वि न, भाद्रपद कार्तिक मास में शेषनाग का सिर पूर्व दिशा मे मार्गशीष, पौष माघ में उक्षिण में तथा फाल्गुन चैत्र वैशाख पश्चिशम में और जेष्ठ आषाढ़ श्रवण मे मुख उत्तर दिशा मे रहता है। फल:- यउद शेषनाब के सिर पर खुदवायें तो मातृपितृ गुरू की हानी होती है। पीठ पर खुदवायें तो भय रोग और पूंछ पर खुदवायें तो तीन गौत्र की हानी होती है। खाली जगह पर खुदवायें तो शुभ लाभ होता है।
शयन:-
सूर्य के नक्षत्र में पांचवे, २० वे ९ वे १२ वे २६ वे इन पर पृथ्वी धरत्रि शयन करती है। सोयी हुई पॄथ्वी पर तालाब, बावडी, कुंआ, हवेली, मठ मन्दिर कभी नही खोदना चाहिये। अत: धरत्री गायत्री पूजन जेष्ठ, आषाढ़ श्रावण में करें पूजन के लिए सोभाग्य सूचक कुंकुम, हल्दी अक्षदा कमल का फूल गंगा जल कलश, धुप दिश घृत इत्यादि साहित्य से धारत्री का द्वादश मन्त्र पढकर चक्र मे दिखाये हुये यन्त्र के ऊपर अक्षदा छोडें।
धरत्री गायत्री द्वादश मन्त्र
सत नमो आदेश। गुरूजी को आदेश। ॐ गुरूजी। जो समान धर्ती तिल समान काया, फाटक खोल धर्ती माता तेरे मे योगीश्वआर आया। हिन्दू को जलाया, मुसलमान को दबाया-तिसरा सिक्का श्री नाथ जी ने चलाया। सातवें पाताल एक निरंजन निराकार ज्योति स्वरूप उनकी चरण पादुका पूजिये जो ! चरण कमल पर जल, जल पर थल, थल पर मच्छ, मच्छ पर कच्छ, कच्छ पर कमल का फूल, कमल के फूल पर शोषनाग, शेषनाग पर धौल बैल धौल बैल के सींग पर राई का दाना। राई के दाने पर श्री नाथ जी ने नवखण्ड पृथ्वी ठहरायी। प्रथम नाम धर्ती (यन्त्र के ऊपर ‘’ॐ धर्ती माता को आदेश’’ कहकर अक्षद छोडें) द्वितिये नाम विश्वलम्भरा (यन्त्र के ऊपर ‘’ॐ विश्वंम्भरा माता को आदेश’’ कहकर अक्षद छोडें) तृतीय नाम मेद मेदिनी (यन्त्र के ऊपर ‘’ॐ मेद मेदिनी माता को आदेश’’ कहकर अक्षद छोडें) चतुर्थ मनसा (यन्त्र के ऊपर ‘’ॐ माता मनसा को आदेश’’ कहकर अक्षद छोडें) पांचवे नाम कृतिका (यन्त्र के ऊपर ‘’ॐ कृतिका माता को आदेश’’ कहकर अक्षद छोडें) छटे नाम ब्रह्मचण्डी (यन्त्र के ऊपर ‘’ॐ माता ब्रह्मचण्डी को आदेश’’ कहकर अक्षद छोडें) सातवें कन्या कुमारी (यन्त्र के ऊपर ‘’ॐ माता कन्या कुमारी को आदेश’’ कहकर अक्षद छोडें) अष्ठ मे वज्रबाला भव योगनी (यन्त्र के ऊपर ‘’ॐ वज्रबाला माता को आदेश’’ कहकर अक्षद छोडें) नवमे नौ करोड दुर्गा (यन्त्र के ऊपर ‘’ॐ नो करोड दुर्गा माता को आदेश’’ कहकर अक्षद छोडें) दशमे सिंह भवानी (यन्त्र के ऊपर ‘’ॐ भवानी माता को आदेश’’ कहकर अक्षद छोडें) ग्यारहवें चन्द्रघण्टा मृतका (यन्त्र के ऊपर ‘’ॐ माता चन्द्रघण्टा को आदेश’’ कहकर अक्षद छोडें) बारहवें बरदायनी। (यन्त्र के ऊपर ‘’ॐ माता बरदायनी को आदेश’’ कहकर अक्षद छोडें) आदि सत्य, नाद सत्य, मुद्रा सत्य, सत्य धर्ती माई धर्ती ध्यान सदा से लायी, अरणी-अरणी सूर्य चान्द को धाई। धर्ती माता तुम बडी तुमसे बडा न कोय। जो धर्ती पर पग धरे तो कन्चन काया होय। आदि की धर्ती अन्त की काया। अमर हो धरती वज्र हो काया। धर्ती माता के पिण्ड प्राण सदा बालक स्वरूपी हो रहे। कसटया न काटे, जाल्या न जले, डुबाया न डुबे, ब्रह्म तेज हो रहे धर्ती द्वादश पढ़न्ते सुन्नते मोक्ष मुक्ति फल पावन्ते। गर्भ योनी कभी न आवन्ते। श्री नाथजी गुरूजी को आदेश।आदेश।आदेश। इसी तरह मन्त्र पढकर सामुपचारे पंचोपचारे या षोडशोपचारे या यथालब्धोपचार धर्ती माँ की पूजा करें।
सुचना सिद्धि:-
गुफा मे या जमीन खोद कर धर्ती के अन्दर बाघांबर आसन लगा कर जेष्ठ, आषाढ़, श्रावण मास मे या शरद ॠतु मे सूर्य उत्तरायण में यह मन्त्र ४१ दिन तक जाप करे तो भूमि के अन्दर, द्रव्य दर्शन, जल दर्शन, खनिज दर्शन इत्यादि सिद्धियां प्राप्त होती हैं। साधक अनुष्ठान करके तथा गुरू की आज्ञा से यह साधना करे।
विशेष:-