सतनमो आदेश । श्री नाथ जी गुरु जी को आदेश ।
ॐ गुरु जी ।
कहो रे बालक किस मूण्डा किस मुण्डाया किसका भेजा नगरी आया ।
सतगुरु मुण्डा लेख मुण्डाया, गुरुं का भेजा नगरी आया । चेताऊ नगरी तारू गांव ,अलख पुरुष का सिमरू नाम ।
गुरु अविनाशी खेल रचाया, अगम निगम का पंथ बनाया । ज्ञान की गोदड़ी क्षमा की टोपी , जत का आडंबर - शील लंगोट ।
आकार खिन्था - निराश झोली , युक्ति का टोप - गुरु मुख की बोली । धर्म का चोला सत की सेली , मरी जात मेखले गले मे सेली ।
ध्यान का बटुवा - निरत का सूईदान - ब्रह्म अचवा पहिने सुजान । बहुरंगी मोरदल - निर्लेप दृष्टि निर्भिजन डोरा न कोई सृष्टि ।
जाप जपोला , शिव सा दानी । सिंगी शब्द गुरु मुख को बानी । संतोष सूत - विवेक धागा , अनेक टिल्ली तहाँ जा लागा ।
शर्म की मुद्रा - शिव विभूता , हर वक्त मृगयानी ले पहनी गुरु पूता ।
सूरत की सुई - सतगुरु सेवे जो ले राखे निर्भय रहे , सेली कहे शील को राख - हर्ष शोक मन मे नही भाख ।
चोरी यारी निद्रा परि हरे । काम क्रोध मल सूत्र न धरे । इतना गोरक्षनाथ जी पंचमात्रा जाप सम्पूर्ण भया ।
श्री नाथ जी गुरु जी को आदेश आदेश आदेश ।
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