جمعہ، 20 دسمبر، 2024

Samaadhi Gayathri


प्रथम धरती द्वितीय आकाश
शत-शत तीनो लोक में वास
चौथे किया कंचन पैदाश
पांचवे धर्म गुसाईं चरण पादुका ब्रह्म छेद
ॐ नमो आदेश गुरु ने।
गुरु तो वन खण्ड पीर कुवाया
तपो वरणी जीव कुवाया
मन उदास भागा
यम लोक सूं जाय आगा।
समाधि गुफा होव एती,
साढ़े तीन हाथ होव जेती।
ब्रह्मा ओडी, विष्णु कुदाली
ईशर गंवरा माटी डाली
हाड गळे हिंगलाज लाजै
मांस गळे मछंदर लाजै
परलै जाय तो सतगुरु लाजै।
सुरनर तो ध्यान करे नर सोई
धरती माता प्रसन्न होई
तेरी काया तेरी माया
तेरा ही था तुझी में समाया।
कहे महादेव सुन पार्वती
एती पढ़ो नित पठी
प्राणी का पाप जाय,
भव भव प्रलय गति।
समाधि बुध भई, महा समाधियां श्री।
परम जोत में तन विश्व किण गुरु से।
अपनी माता नुगरां को मारती,
काया का कलंक निवारती।
राजा इंद्र को श्राप डालती।
खेचरी भूचरी चाचरी
अगोचरी अगमनी पांचों मुद्रा।
पढ़ते पढ़ावते सुनावते
मोक्ष मुक्ति फल पावते
वासा मेरा हंसा प्राणी
पिंडरायां को क्यूं जपो प्राणी
दोजख री विषय मुल्ला सुल्ला
तो सन्मुख नासिका सुरसती।
एती माता अघोर पाप टालती
गुरु हत्या, स्त्री हत्या, पग पग जीव हत्या
बाल हत्या, ब्रह्म हत्या, सर्व हत्या का दोष
माता गायत्री टालती।
सीड़ा भीड़ा को ले तिरणी
किण गुरु से अपनी माता
ॐ नमो स्तुते श्री, पाप से टालती
पढ़ते पढ़ावते मोक्ष मुक्ति फल पावते

समाध गायत्री का जाप सम्पूर्ण भया
अनंत करोड़ नव नाथ चौरासी सिद्धों में
श्री गोरखनाथजी जसनाथजी ने कहा।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।

کوئی تبصرے نہیں:

ایک تبصرہ شائع کریں