پیر، 26 فروری، 2024

सरभंग गायत्री मंत्र

तृतीय/सरभंग गायत्री मंत्र

सतनमो आदेश।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी आदि का श्री नाथजी पीछे का हिन्दू ।कोल का पति पत्नी कोल का समागम कोल का आसमान।कोल का बन्दा ,कोल की धरती ,कोल का मुसलमान।भग सरभंग तीन लोक में रज की सृष्टि बनाई।लिंग सरभंग तीन लोक में बिन्द की काया रखाई।धरती सरभंग तीन लोक की रचना रचाई।सूर्य सरभंग तीन लोक की करुणा छाईं।चंद्रमा सरभंग तीन लोक की अमीं बरसाई।भग में लिंग दरसे।भग में रज समाई।लिंग में असँख्य बून्द बिन्द की दरसे।वहाँ ज्योति में ज्योति जगाई।ज्योति में हमारा तुम्हारा निरंजन गुसाँई।गुदा चक्र सरभंग आसन कौन सरभंग से न्यारा हैं। जहाँ शिव शक्ति का समागम हो चार जुगों से न्यारा हैं।सरभंगी सरभंगी बहन भाई।सरभंगी खोजों घट में मांही।सरभंगी का सकल पसारा।सरभंगी सभी से न्यारा।मैं सरभंगी सबका संगी।सबको भेद बताऊंगा।मैं अनघड़ का चेला।रहूँ अकेला।नहीं मैं किसी को शीश झुकाऊँगा।ऊंचा नीचा राजा पकड़ू एक प्याला पिलाऊंगा।गर्व करें संसार पांव सबका झुकाऊँगा।तले को अम्बर ऊपर को पृथ्वी।उलटी राह चलाऊंगा।वज्जर मन्त्र का गोला बाऊं।पर्वत मार उड़ा दूंगा।कहो तो पवन बसाकर राखूं।कहीं तो मेंह बरसाऊंगा।मारूँ मेंख।वज्जर की टक्कर।आखर आगे चले नही पालर।काल बांधू।दुश्मन के सातों अंग बांधू।काम बांधू।कपाल बांधू।दसों दिशा चौसठ वायु बांधू।लूली लँगड़ी बुची मेंली कुचैली का माथा मुंडू।जोगी बड़ा जुगति के मांही।जोगेश्वर धरे सत का ध्यान।सत कर दूं न्यारा न्यारा।मन्त्र तन्त्र यन्त्र की पदवी का गर्व करें तो जला दूं पूरा।सिद्धाई का बाना पूछूं गाड़ दूं दह मांही।लेरी लेरी बावन भैरव चौसठ योगिनी छप्पन कलुआ।शैल शिकारी।रात हाड़ बीज भाली तुम्हारी दासी।हाकिम का मुँह काला कर दूं।नर को बना दूं नारी।राजा कर दूं भैसा।डंकिनी।शंकिनी।भूतनी।प्रेतनी।जिन्द खईस मरी मसाण को बांध बांध कर ठिकरें में धर कर लगा दू वज्जर का ताला।कमर की पीड़ा,मंगरा की पीड़ा,कान की पीड़ा,कलेजे की पीड़ा,पेट की पीड़ा को जड़ से कर दूं खत्म।ताप तेईया चौथेया ज्वर तोड़ू।अटक दो नाड़ी।हज़रत मांगे भाड़ा।जति गोरक्षनाथ जी बोले उलटी वाणी।ब्रम्हाण्ड को तोला।कुआँ ऊपर चादर तानी।आसन मारूँ गहरा।गहरा जा मढ़ी मसाण डेरा।धोल जगा बुलवाओ।ढ़ेर गोरक्षनाथ गुरु का चेला।मढ़ी मसाण में फिरे अकेला।बैठ मढ़ी मसाण में मुआ मुर्दा सरजीवन करें।मुआ मुर्दा बोले।खड़ा पुतला चलें।बंगाल खण्ड कामरू देश से चली चण्डी।हाथ में लिया तेल की हंडी।चण्डी चण्डी।फिरे ब्रम्हण्डी।इतना सरभंग गायत्री मंत्र जाप सम्पूर्ण भया।कैलाश पर्वत की शिला पर पद्मासन बैठ कर माता गौरां पार्वती ने बाल योगी मार्कण्डेय नाथ जी को कान में सुनाया।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

श्री श्री १००८ 

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