جمعرات، 12 اکتوبر، 2023

सूर्य मंत्र

सूर्य मंत्र

ॐ सत नमो आदेश गुरु जी को आदेश ! आदेश! ॐ गुरु जी ! ॐ ऊगंत सूर, बाजंत तूर. बरसंत सूर काल कण्टक जाहि दूर । हाथ खंग गले पुष्प माला, नौ खण्ड पृथ्वी भया उज्याला । त्रिकाल देवता सूरज स्वरूपी, प्रभाते ब्रह्म स्वरूपी मध्याहे विष्णु स्वरूपी, सन्ध्याहे शिव स्वरूपी, एता सूर्य जाप जपन्ते, अष्ट सिद्धिनव निधि फलंते। ऊँकार, जै जै कार, सूर्य देवता को नमस्कार ।लक्ष्मण कुंडली

सिद्धो! देखो कलू काल की निशानी। अग्नि रूपी समोनारी, घृतरूप समो नरः । कथ्यते लक्ष्मण जतीः ।।

ॐ गुरु जी सत्त हीन पृथ्वी, गगन हीन पानी, वेद हीन ब्रह्मा ज्ञान हीन योगी । माता जाकी लष्टम पस्टम, पिता वर्ण संकरा तासु पुत्र भये योगी धुन्धुपाधी तस्करा, मस्करा । माता जाकी सतवन्ती (सीलवन्ती) पिता सत सत भाषते । तासु पुत्र भये योगी, योगारम्भ को साधन्ते अष्टोत्तर कुल तारन्ते ।। पाप छोड़ पुण्य लगन्ते । कहो तो गुरु जी धरती पलटू कहो तो पलटू काया। कहो तो गुरु जी दीन पलटू कहो तो खँ माया ।। काहे को लक्ष्मण दीन पलटो, काहे को खींचो माया। आपो आप धुन्धु (द्वन्द मचेगा, हुकम गुरु का आया।।



दर्शनी तो कर्षनी होंगे, राजे होंगे हाली। जती सती कोई विरला होगा, हो जाएँगे सब घर बारी ।। पहरा आएगा शाह का, धरती मांगेगी भोग कितनों को षड्ग संहारसी कितनों को व्यापे रोग ।। पैसे पैसे में घोड़ा होगा, धेले धेले नारी। जती सती कोई बिरला रहेगा, और सब हो जायेंगे घर बारी।।

देवल देख के देव धसेगा, मस्जिद देख मुनारा जम्बू द्वीप में हलचल मचेगी कोई न होगा सिद्धो वर्जनहारा ।। तपस्वी तो हाट, मांगेगा, सुद्र तो एकादशी रखेंगे।

ब्राह्मण तो बाट मांगेंगे, गुरु चेले का प्रायश्चित लगेगा ।।

पुत्र न माने माई ना बाप । सात वर्ष की कन्या साधेगी घरबार ।। इन्द्र तो अलप बरसेंगे, संसार तो निष्फल फलेगा, नदी नालों का जल सूख जायेगा ।। गंगा यमुना सातवें पाताल में बहेगी, तब सिद्धो आया कलूकाल का वर्तमान ।

दिल्ली तख्त का झंडा झाड़ फाड़ कर बिछायेंगी, चौसठ योगिनी बैठकर मंगल गीत गावेंगी।।

श्वेत घोड़ा श्वेत पलाण, जिस पर बैठे अलष पुरुष निर्वाण पहले बैठी बामना, पीछे बैठी बीणजपुत्र जगत व्योवहार, जोगी कूड़ा कामनियाँ ।। हम तो सिद्धो तत्व निर्वाणी, अधर तत्त लौ लाई!

नित्त उठ अपनी काया को खोजो, आवागवन मिट जाई ।। सत् की सिद्धो सेली बांधलो, सब्द गुरु का वाचा, रण में झुंझे सो सूरमा जान । असंख जो जोगी रहे मलंगा, खड़ग कामिनी खेले संगा।। हंस हंस रखो काया गढ़ का राज, दृढ़कर राखो अपने पास। बज्र की लंगोटी बांधो कसकर पांच भूत आतमा करलो वश ।। लक्ष्मण जी कहे राम चन्द्र जी सुन लो !

कलयुग मध्ये वृत्तान्त सम्पूर्ण, लक्ष्मण कुंडली जाप सम्पूरण भया ।। टिल्ला शिवपुरी स्थान पर बैठकर सिद्ध बाल गुंदाई जी ने कथ पढ़कर सुनाया। श्री नाथ जी गुरु जी आदेश! ओदश !

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